संदेश

सितंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रावण

रावण ***** आज फिर याद करके उसकी गलतियों को पुतला जलाएँगे हम। पर अपने अंदर... फिर भी सम्भाल कर रखेंगे। जिससे हम डरते है.... उसका पुतला जला तसल्ली कर लेते हैं। बरसों से..युगों से.. बचा के रखा तो है हमने उसे। और अब तो कलयुग है प्रभु! वह तो त्रेता में भी बलशाली था। वह सचिदानंद न सही, सर्वव्यापी तो है ही.. आज भी.. क्या नहीं है? हर बार... हर साल जलाने पर भी मरता नहीं है वो। सुरसा की तरह बढ़ता ही जा रहा है.. पर हनुमान भी तो आते नहीं..। अनेक कुबेरों पर एक छत्र अधिकार उसका ही तो है। स्वर्णजटित जल, पहाड़, प्रकृति को खोद-उलीच कर दोहन कर रहा है। वह फिर-फिर जी उठता है.. हर बार.. रक्तबीज के जैसे। पर महाकाली भी तो आती नहीं... बढ़ता जाता है... जलकुम्भी की तरह ... जल में। बबूल की तरह ...स्थल में धूल और धुँए की तरह... आकाश में। और.... पाप की तरह ...मन में। बल्कि.... वह कभी मरा ही नहीं । क्योंकि.... नाभि का अमृत उसका हटा नहीं है। पर राम ... आते नहीं। हाँ..जिस राम का रूप बनाने की हिम्मत उसने कभी की न थी। उस राम के भेष में बहुरूपिये चारो तरफ हैं। वह तो एक ही था

क्यों नहीं आते ईश्वर पृथ्वी पर

क्यों नहीं आते ईश्वर पृथ्वी पर ********************** एक पुरानी कहानी है। उन दिनों.... ईश्वर ने नई-नई दुनिया बनाई ही थी। अपनी रचना, अपनी कोई भी कृति सबको सुंदर लगती ही है। वह भी देखता रहता था ऊपर से कि कहाँ पर क्या हो रहा है। अब तो थक गया, ऊब गया। सब जगह शांति... कोई हलचल नहीं... ...और फिर उसने बेमन से... थोड़ी -थोड़ी कमियों के साथ मनुष्य को बनाना आरम्भ कर दिया। एक-एक अंधा लँगड़ा भी बना दिया। उनके पूर्व जन्म के कर्मों के हिसाब से... ....और उस अँधे और लँगड़े को भी देखने लगा... कब तक देखता रहे। बड़े परेशान होते थे वे... अपनी ही सृष्टि को देख दया आने लगी उसे ... बड़ी दया आयी। उसने सोचा... .. कि इन दोनों को ठीक कर दूं जाकर। आया। दोनों नाराज होकर एक दूसरे से, अलग-अलग वृक्षों के नीचे बैठे थे। हाँ-हाँ उन दिनों पृथ्वी पर काफी वृक्ष हुआ करते थे। वे दोनों... विचार कर रहे थे कि किस तरह.. अंधा सोच रहा था कि इस लँगड़े की आंखें किस तरह फोड़ दूं। बड़ी अकड़ बनाए हुए है आंखों की।   ...और लंगड़ा सोच रहा था कि इस अंधे की टाँग कैसे तोड़ दूं। तभी ईश्वर पधारे। उसने पूछा पहले अंधे से...

हरि अनंत हरि कथा अनंता। A Gateway to the God

हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥ रामचंद्र के चरित सुहाए। कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥ श्री हरि विष्णु अनंत हैं उनका कोई पार नहीं पा सकता और इसी प्रकार उनकी कथा भी अनंत है। सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से सुनते और सुनाते हैं। श्री रामचन्द्रजी के सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते। यह प्रसंग मैं कहा भवानी। हरिमायाँ मोहहिं मुनि ग्यानी॥ प्रभु कौतुकी प्रनत हितकारी। सेवत सुलभ सकल दुखहारी॥ शिवजी कहते हैं कि हे पार्वती! मैंने यह बताने के लिए इस प्रसंग को कहा कि ज्ञानी मुनि भी भगवान की माया से मोहित हो जाते हैं। प्रभु कौतुकी व लीलामय हैं और शरणागत का हित करने वाले हैं। वे सेवा करने में बहुत सुलभ और सब दुःखों के हरने वाले हैं। सुर नर मुनि कोउ नाहिं जेहि न मोह माया प्रबल। अस बिचारि मन माहिं भजिअ महामाया पतिहि॥ देवता, मनुष्य और मुनियों में ऐसा कोई नहीं है, जिसे भगवान की महान बलवती माया मोहित न कर दे। मन में ऐसा विचारकर उस महामाया के स्वामी श्री रामजी का भजन करते रहना चाहिए।

समानता कबीर और बुद्ध की।

कबीर और बुद्ध *********** मन रे जागत रहिये भाई। गाफिल होइ बसत मति खोवै। चोर मुसै घर जाई। षटचक्र की कनक कोठरी। बस्त भाव है सोई। ताला कुंजी कुलक के लागै। उघड़त बार न होई। पंच पहिरवा सोई गये हैं, बसतैं जागण लागी, जरा मरण व्यापै कछु नाही। गगन मंडल लै लागी। करत विचार मन ही मन उपजी। ना कहीं गया न आया, कहै कबीर संसा सब छूटा। राम रतन धन पाया। बुद्ध एक गांव के पास से गुज़रे। लोगों ने गालियाँ दी,अपमान किया। बुद्ध ने कहा,क्या मैं जाऊँ,अगर बात पूरी हो गई हो?क्योंकि दूसरे गांव मुझे जल्दी पहुँचना है। लोगो ने कहा, हमने भद्दे से भद्दे शब्दों का प्रयोग किया है, क्या तुम बहरे हो गए? क्या तुमने सुना नहीं? बुद्ध ने कहा कि सुन रहा हूँ।पूरे गौर से सुन रहा हूँ। इस तरह सुन रहा हूँ,जैसा पहले मैने कभी सुना ही न था, लेकिन तुम ज़रा देर करकेआए। दस साल पहले आना था। अब मैं जाग गया हूँ। अब चोरों को भीतर घुसने का मौका न रहा। तुम गाली देते हो। मैं देखता हूँ। गाली मेरे तक आती है और लौट जाती है।  ग्राहक मौजूद नहीं है । तुम दुकानदार हो। तुम्हें जो बेचना है, तुम ले आए हो। लेकिन ग्राहक मौजूद

श्रीरामजानकी जी रूपध्यान

श्रीरामजानकी जी रूपध्यान ********************** पद राजीव बरनि नहिं जाहीं। मुनि मन मधुप बसहिं जेन्ह माहीं॥ बाम भाग सोभति अनुकूला। आदिसक्ति छबिनिधि जगमूला॥  भगवान के उन ऐसे चरणकमलों का वर्णन कैसे किया जा सकता है जिनमें भक्त मुनियों के मन बसते हैं। भगवान के बाएँ भाग में सदा अनुकूल रहने वाली, शोभा की राशि जगत की मूलकारण रूपा आदिशक्ति श्री जानकीजी सुशोभित हैं॥ जासु अंस उपजहिं गुनखानी। अगनित लच्छि उमा ब्रह्मानी॥ भृकुटि बिलास जासु जग होई। राम बाम दिसि सीता सोई॥ जिनके अंश से गुणों की खान अगणित लक्ष्मी, पार्वती और ब्रह्माणी त्रिदेवों की शक्तियाँ उत्पन्न होती हैं तथा जिनकी भौंह के इशारे मात्र से ही जगत की रचना हो जाती है, वही भगवान की स्वरूपा शक्ति श्री सीताजी श्री रामचन्द्रजी की बाईं ओर स्थित हैं॥

क्या माँगे भगवान से

जे निज भगत नाथ तव अहहीं। जो सुख पावहिं जो गति लहहीं॥ सोइ सुख सोइ गति सोइ भगति सोइ निज चरन सनेहु। सोइ बिबेक सोइ रहनि प्रभु हमहि कृपा करि देहु॥ हे नाथ! आपके जो भी परम् भक्त जन हैं, व आपके सानिध्य से जो अलौकिक,अखंड और दिव्य सुख पाते हैं और जिस परम गति को प्राप्त होते हैं, हे प्रभो! वही सुख, वही गति, वही भक्ति, वही अपने चरणों में प्रेम, वही ज्ञान और वही रहन-सहन कृपा करके हमें दीजिए॥