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श्री हाटकेश्वरो सदा विजयते

श्री हाटकेश्वरो सदा विजयते। ********************** पृथ्वीलोक के नीचे सप्त पाताल का वर्णन सनातन शास्त्रों में वर्णित है। इन सात में पहला अतल, दूसरा वितल, तीसरा सुतल, चौथा तलातल, पाँचवाँ महातल, छठा रसातल और सातवाँ पाताल । यह सभी पाताल लोक अनन्य ऐश्वर्य, सुख, शोभा तथा वैराग्य से सुशोभित हैं। श्रीब्रह्मा जी ने अलौकिक वितल पाताल में हाटक नामक अद्भुत स्वर्ण के द्वारा भगवान् हाटकेश्वर महादेव के शिवलिङ्ग को रचित-अर्चित किया था। यही नागर ब्राह्मणों के ईष्टदेव हाटकेश्वर महादेव हैं।  कालान्तर में भगवन शिव के आशीर्वाद स्वरुप इनका मंदिर प्राचीन आनर्तदेश तथा वर्तमान वडनगर स्थित है। ऐसे श्री हाटकेश्वर प्रभु का स्मरण करते हुए मैं समस्त विश्व के कल्याण की कामना करता हूँ। ---- आनर्तविषये रम्यं सर्वतीर्थमयं शुभम्। हाटकेश्वरजं क्षेत्रं महापातकानाशम्। मर्यार्हाघंत्दिलिङ्ग हाटकेनविनिर्मितम् । ख्यार्तियास्यति सर्वत्र पाताले हाटकेश्वरम् । ---- यह सत्य ही है कि यह मूल शिवलिंग पाताल में स्थित है। सभी पाताललोक अथाह धन, सुख और अप्रतिम शोभा से परिपूर्ण हैं । कहा जाय कि यह सब लोक स्वर्ग से भी बढकर हैं तो