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छान्दोग्योपनिषद (तृतीय प्रपाठक चतुर्दश खण्ड हिंदी भावार्थ सहित)

॥ चतुर्दशः खण्डः ॥ सर्वं खल्विदं ब्रह्म तज्जलानिति शान्त उपासीत । अथ खलु क्रतुमयः पुरुषो यथाक्रतुरस्मिँल्लोके पुरुषो भवति तथेतः प्रेत्य भवति स क्रतुं कुर्वीत ॥ ३. १४. १ ॥     यह ब्रह्म ही सबकुछ है । यह समस्त संसार उत्पत्तिकाल में इसी से उत्पन्न हुआ है, स्थिति काल में इसी से प्राण रूप अर्थात जीवित है और अनंतकाल में इसी में लीन हो जायेगा । ऐसा ही जान कर उपासक को शांतचित्त और रागद्वेष रहित होकर परब्रह्म की सदा उपासना करे।जो मृत्यु के पूर्व जैसी उपासना करता है, वह जन्मांतर वैसा ही हो जाता है। मनोमयः प्राणशरीरो भारूपः सत्यसंकल्प आकाशात्मा सर्वकर्मा सर्वकामः सर्वगन्धः सर्वरसः सर्वमिदमभ्तः । अवाकी । अनादरः॥ ३. १४. २ ॥   सच्चे मन से अनुग्रहीत होकर ( विवेक, विमोक, अभ्यास, क्रिया, कल्याण, अनवसाद और अनुद्धर्ष ये ७ साधनों से निर्मल किया गया मन ही ग्रहण करने योग्य है ) से ईश्वर की उपासना करने वाला शुद्ध प्राण व शरीर प्राप्त करता है और आकाश के समान स्वयं भी प्रकाशित होता है तथा दूसरों को भी प्रकाश देता है । वह दोष रहित सभी कर्म, भोग, गंध व रस प्राप्त करता है।