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श्रीशंकराष्टकम्

                श्रीशंकराष्टकम् शीर्षजटागणभारं   गरलाहारं   समस्तसंहारम्   । कैलासाद्रिविहारं   पारं   भववारिधेरहं   वन्दे   ॥   १   ॥ चन्द्रकलोज्ज्वलफालं   कण्ठव्यालं   जगत्रयीपालम्   । कृतनरमस्तकमालं   कालं   कालस्य   मोमलं   वन्दे   ॥   २   ॥ कोपेक्षणहतकामं   स्वात्मारामं   नगेन्द्रजावामम् । संसृतिशोकविरामं   श्यामं   कण्ठेन   कारणं   वन्दे   ॥   ३   ॥ कटितटविलसितनागं   खण्डितयागं   महाद्भुतत्यागम्   । विगतविषयरसरागं   भागं   यज्ञेषु   बिभ्रतं   वन्दे   ॥   ४   ॥ त्रिपुरादिकदनुजान्तं   गिरिजाकान्तं   सदैवसंशान्तम्   । लीलाविजितकृतान्तं   भान्तं   स्वान्तेषु   देहिनां   वन्दे   ॥   ५   ॥ सुरसरिदाप्लुतकेशं   त्रिदशकुलेशं   हृदयालयावेशम्   । विगतास्जेषक्लेशं   देशं   सर्वेष्टसंपदां   वन्दे   ॥   ६   ॥ करतलकलितपिनाकं   विगतजराकं   सुकर्मणां   पाकम्   । परपदनीतवराकं   नाकंगमपूगवन्दितं   वन्दे   ॥   ७   ॥ भूतिविभूषितकायं   दुस्तरमायं   विवर्जितापायम्   । प्रमथसमूह सहायं   सायं   प्रातर्निरन्तरं   वन्दे   ॥   ८   ॥ यस्तु   शिवाष्टकमेतद्