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श्री महापञ्चमुखहनुमत्कवच

ऊँ अस्य श्री महा पञ्चमुख हनुमत्कवचमंत्रस्य ब्रह्मा रूषि:, गायत्री छंद्:, पञ्चमुख विराट हनुमान देवता। ह्रीं बीजम्। श्रीं शक्ति:। क्रौ कीलकम्। क्रूं कवचम्। क्रै अस्त्राय फ़ट्। इति दिग्बंध्:। श्री गरूड उवाच्- अथध्यानं ******* मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।। श्रुणु सर्वांगसुंदर, यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमत्: प्रियम्||१|| पंचकक्त्रं महाभीमं त्रिपंचनयनैर्युतम्| बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिध्दिदम्||२|| पूर्वतु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम्| दंष्ट्राकरालवदनं भ्रुकुटीकुटिलेक्षणम्||३|| अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम्| अत्युग्रतेजोवपुष्पंभीषणम भयनाशनम्||४|| पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम्| सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम्||५|| उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दिप्तं नभोपमम्| पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम्| ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम्| येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यमं महासुरम्||७|| जघानशरणं तस्यात्सर्वशत्रुहरं परम्| ध्या त्वा पंचमुखं रुद्रं हनुमन्तं

तीन गुण

तीन गुण ******* जीवन के तीन गुण सफलता सम्पन्नता और अवस्था अपनी तरफ खींचती है। मित्रों को.. विरोधियों को भी... सदा से । सभी बन जाते हैं मित्र। छलकने लगता है प्रेम। पर... यह 'पर' बड़ा गहरा सूचक है। जैसे ही यह तीनों ढलान पर क्षीण होते है, साफ दिखने लगता है सबका.. ... प्रेम। क्योंकि... उनमें से कुछ प्रेम करते हैं... हृदय से, कुछ देह से, और कुछ... बुद्धि से। एक निष्काम, रहेगा सर्वदा। दूसरा सकाम... चला जाएगा, और... तीसरा, जो प्रेम की आड़ में है, पूर्ण विलोम। रे...बचना इसी से है... रहना है.. सा व धा न।