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आस्था..श्रद्धा और विश्वास।

एक गाँव था... छोटा सा। गाँव मे एक वृद्ध साधुबाबा भी रहते थे। गाँव से थोड़ी सी दूरी पर एक मंदिर था, बड़ा दिव्य। वह बाबाजी उसमें कन्हैया की पूजा-अर्चना करते। प्रतिदिन का उनका एक नियम था कि अपनी झोपड़ी से निकल कर  के मंदिर जाते और सायंकाल भगवान के सम्मुख दीपक जलाते। उसी गांव में एक नास्तिक व्यक्ति भी रहता था। जैसे ही वह साधु दीपक जलाते और घर के लिए वापस निकलते, यह व्यक्ति भी प्रतिदिन मंदिर में जाकर दीपक को बुझा देता था। साधु ने कई बार उसे समझाने का प्रयत्न किया पर वह व्यक्ति कहता- भगवान हैं तो स्वयं ही आकर मुझे दीपक बुझाने से क्यों नहीं रोक देते। बड़ा ही नास्तिक है तू... कहते वे भी निकल जाते। यह क्रम महीनों, वर्षों से चल रहा था । एक दिन की बात, मौसम कुछ ज्यादा ही खराब था, आँधी और तूफान के साथ मूसलाधार वर्षा ज्यों थमने का नाम ही न ले रही थी। साधू ने बहुत देर तक मौसम साफ होने की प्रतीक्षा की, और सोचा... "इतने तूफान में यदि मैं भीगते, परेशान हुए मंदिर गया भी और दीपक जला भी दिया तो वह शैतान नास्तिक आकर बुझा ही देगा.. "रोज ही बुझा देता है" अब आज नहीं जाता हूँ। कल

कथा 2

सारद दारुनारि सम स्वामी। रामु सूत्रधर अंतरजामी॥ जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥ शारदा-सरस्वती अर्थात बुद्धि-वाणी-विद्वत्ता आदि तो कठपुतली के समान हैं और अंतर्यामी स्वामी राम (सूत पकड़कर कठपुतली को नचानेवाले) सूत्रधार हैं। अपना भक्त जानकर जिस कवि पर वे कृपा करते हैं, उसके हृदयरूपी आँगन में सरस्वती को वे नचाया करते हैं। उनकी *कृपा बिन* कुछ भी सम्भव नहीं है।

कथा 1

सती के रूप में दक्षयज्ञ में अपने प्राण त्यागने के पश्चात शक्ति ने पार्वती के रूप में हिमाचल के घर जन्म लिया। घनघोर तप कर पुनः शिव को प्राप्त किया। पूर्व जन्म के संदेह को याद कर पुनः शिव से पूछा- तुम्ह पुनि राम राम दिन राती। सादर जपहु अनँग आराती॥ रामु सो अवध नृपति सुत सोई। की अज अगुन अलखगति कोई॥ है प्रभु! हे कामदेव के शत्रु! आप दिन-रात राम-राम जपा करते हैं- ये राम वही अयोध्या के राजा के पुत्र हैं? या अजन्मे, निर्गुण और अगोचर कोई और राम हैं?॥ तब शिव ने पार्वती जी को राम कथा सुनाई। बोले- बंदउँ बालरूप सोइ रामू। सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू॥ मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी॥ मैं उन्हीं श्री रामचन्द्रजी के बाल रूप की वंदना करता हूँ, जिनका नाम जपने से सब सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं। मंगल के धाम, अमंगल के हरने वाले और श्री दशरथजी के आँगन में खेलने वाले बालरूप श्री रामचन्द्रजी मुझ पर कृपा करें॥

आक्रोश

ये कहना ही बहुत नहीं कि बातों में गहराई है। व्यंग्य बहुत पैना है सीने पे चोट खाई है। बहुतों से बहुत आगे सोचने का माद्दा है। यादों में अतीत है औ.. भविष्य की सच्चाई है। ये वर्तमान समय साथी शीर्ष पर ले जा रहा इसका प्रयोग तो अर्थ है रह गया तो फिर व्यर्थ है। चिंगारी जब सुलग जाए फिर लौ को लपट बनने दो। व्यथित मन उदगार सारे लार्व बन के बहने दो।

भगवान आखिर क्यों नहीं सुनते हमारी

भगवान आखिर क्यों नहीं सुनते हमारी ****************************** मैं तो प्रति...दिन सुबह जल्दी भोर ही उठ जाता हूँ। फिर नहा धो कर आपके मंदिर में घण्टी बजाता हूँ। सोया हुआ समझकर भगवान् को जगाता हूँ। और गंगाजली उठाकर स्नान भी कराता हूँ। स्वच्छ पंचामृत से मैने चरण उनके धोए है चंदन से टीका तिलक करना मैं कभी भूला नहीं, नित नए नूतन वस्त्र भी मैने उन्हें पहनाए हैं और गंध, अक्षत मिलाकर ये पुष्प भी तो चढ़ाए हैं। पर क्यों नही सुनता मेरी तू.... अक्सर सभी के मन में यह प्रश्न रहता हैं कि हम दिन-रात भगवान से प्रार्थना करते हैं लेकिन भगवान हमारी प्रार्थना सुनते क्यों नहीं हैं ? पर ये तय है कि भगवान हमारी हर प्रार्थना सुनते है, लेकिन उसमें प्रेम हो, करुणा हो, और सबसे बढ़कर पूर्ण समर्पण हो, अर्थात भक्ति का भाव हो। चाहे वह निष्काम ही या सकाम। हम कितना भी मनका फेर लें, हम चाहे लाख बार राम कहे, चाहे करोड़ बार, लेकिन यदि एक बार ह्रदय से राम नाम कहा गया तो वो राम नाम लाख बार नाम लेने से कहीं अधिक होगा। भगवान हमारे मन की बात जानते है क्योंकि वहीं तो वे विराजते हैं। यह भी तय है कि कई सौ