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शिवा-शिव स्तुतिः

                        शिवा - शिव स्तुतिः    ॐ नमःशिवाय शान्ताय पञ्चवक्त्राय शूलिने | नंदी  भृङ्गी    महाव्याल   गणयुक्ताय      शम्भवे || शिवायै       हरकान्तायै      प्रकृत्यै        सृष्टिहेतवे | नमस्ते    ब्रह्म चारिण्यै     जगाद्दात्रै     नमो नमः || संसार   भयः   संतापात्   पाहि  मां  सिंहवाहिनी | राज्य  सौभाग्य  संपत्तिं  देहि मामम्ब पार्वतीम् ||

श्री हनुमान चालीसा

|| श्री हनुमान चालीसा || दोहा श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनऊँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥ बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवनकुमार । बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥ चौपाई जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥ राम दूत अतुलित बल धामा ।अंजनिपुत्र पवनसुत नामा ॥ महाबीर बिक्रम बजरंगी ।कुमति निवार सुमति के संगी ॥ कंचन बरन बिराज सुबेसा ।कानन कुंडल कुंचित केसा ॥ हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥ संकर सुवन केसरीनंदन ।तेज प्रताप महा जग बंदन ॥ विद्यावान गुनी अति चातुर ।राम काज करिबे को आतुर ॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।राम लखन सीता मन बसिया ॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥ भीम रूप धरि असुर सँहारे ।रामचंद्र के काज सँवारे ॥ लाय सजीवन लखन जियाये ।श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥ रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥ सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥ सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।नारद सारद सहित अहीसा ॥ जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।कबि कोबिद क

श्री रामरक्षास्तोत्रं

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इन्टरनेट के स्रोतों से साभार श्रीरामरक्षास्तोत्रं अस्य श्री रामरक्षास्तोत्र मंत्रस्य बुध कौशिक ऋषिः श्री सीताराम चन्द्रो देवता, अनुष्टुप छन्दः,सीता- शक्तिः, श्रीमद हनुमान कीलकं श्री सीताराम चन्द्र प्रीत्यर्थे राम रक्षा स्तोत्र पाठे विनियोगः | ||अथ ध्यानं || ध्यायेदाजनुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दपद्मासनस्थं पीतं वासोवसानं नवकमलदल- स्पर्धिनेत्रं प्रसन्नं | वामांगकारुढ़सीता मुखकमलमिलल-लोचनं नीरदाभं नानालंकार दीप्तम दधतमुरुजटा मंडलम रामचन्द्रं || चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम् | एकैकमक्षरम् पुंसां महापातकनाशनं || ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनं | जानकीं लक्ष्मणोंपेतं जटा-मुकुट मण्डितम् || सासितूण धनुर्रबाणं पाणिं नक्तंचरान्तकं |

संकटमोचन हनुमानाष्टक

संकटमोचन हनुमानाष्टक मत्तगयन्द छन्द बाल समय रबि भक्षि लियो तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो। ताहि सों त्रास भयो जग को यह संकट काहु सों जात न टारो। देवन आनि करी बिनती तब छाँड़ि दियो रबि कष्ट निवारो। को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥१॥ बालि की त्रास कपीस बसै गिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो। चौंकि महा मुनि साप दियो तब चाहिय कौन बिचार बिचारो। कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निवारो। को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥२॥ अंगद के सँग लेन गये सिय खोज कपीस यह बैन उचारो। जीवत ना बचिहौ हम सो जु बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो। हेरि थके तट सिंधु सबै तब लाय सिया-सुधि प्रान उबारो। को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥३॥ रावन त्रास दई सिय को सब राक्षसि सों कहि सोक निवारो। ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाय महा रजनीचर मारो। चाहत सीय असोक सों आगि सु दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो। को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥४॥ बान लग्यो उर लछिमन के तब प्रान तजे सुत रावन मारो। लै गृह बैद्य सुषेन समेत तबै