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आशा... a positive hope

 आशा...उम्मीद...hope ****************** यह तब की बात है... जब मनुष्य और देवता... सेवक और भगवान की तरह आपस में एक-दूसरे से मिलते रहते थे।  यह बात अलग है कि यह कहानी पूरी तरह कपोल कल्पित है।  तब कुछ ऐसा होता था कि मनुष्य प्रतिदिन देवता के द्वार पर जाता, सेवा करता, भोग लगाता, चरण दबाता।  बदले में देवता बताते-   "मैंने तुम्हें दिया जल पीने के लिए,  मैंने ही दी यह मधुर सुगंधित वायु,  यह जीवनदायिनी श्वास..। ये स्वादिष्ट और मधुर फल भोजन के लिए मैंने ही दिए हैं, और वनस्पतियाँ और पुष्ट करने वाला अन्न भी तो।" मनुष्य लजाता, शरमाता अपनी दीनता पर...और बारम्बार कृतज्ञता प्रकट करता। ...फिर एक दिन भयभीत होते, डरते मनुष्य ने देवता को अपने घर...अपनी झोपड़ी में आने का आमंत्रण दिया।  " स्वामी! स्वामी! आप तो परम् कृपालु हैं, आपने कितना कुछ दिया है मुझ सेवक को..। मैं कभी कुछ भी तो दे न सका आपको।  कल आप मेरे घर आएँ,  मैं कुछ रूखा सूखा भोजन बनाऊँ, आप मेरे साथ ही खाना खाएँ। सेवा करूँ कुछ आप की...जीम कर जाएँ मेरी कुटिया पर तो कृतार्थ हो सकूँ।  आपके उपकार का कुछ तो बदला चुका सकूँ।" ...तो सजे-ध