क्यों नहीं आते ईश्वर पृथ्वी पर

क्यों नहीं आते ईश्वर पृथ्वी पर
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एक पुरानी कहानी है।
उन दिनों....
ईश्वर ने नई-नई दुनिया बनाई ही थी।
अपनी रचना, अपनी कोई भी कृति सबको सुंदर लगती ही है।
वह भी देखता रहता था ऊपर से कि कहाँ पर क्या हो रहा है।
अब तो थक गया,
ऊब गया। सब जगह शांति...
कोई हलचल नहीं...
...और फिर उसने
बेमन से...
थोड़ी -थोड़ी कमियों के साथ मनुष्य को बनाना आरम्भ कर दिया।
एक-एक अंधा लँगड़ा भी बना दिया।
उनके पूर्व जन्म के कर्मों के हिसाब से...
....और उस अँधे और लँगड़े को भी देखने लगा...
कब तक देखता रहे।
बड़े परेशान होते थे वे...
अपनी ही सृष्टि को देख दया आने लगी उसे ...
बड़ी दया आयी।
उसने सोचा...
.. कि इन दोनों को ठीक कर दूं जाकर।
आया।
दोनों नाराज होकर एक दूसरे से, अलग-अलग वृक्षों के नीचे बैठे थे।
हाँ-हाँ उन दिनों पृथ्वी पर काफी वृक्ष हुआ करते थे।
वे दोनों...
विचार कर रहे थे कि किस तरह..
अंधा सोच रहा था कि इस लँगड़े की आंखें किस तरह फोड़ दूं।
बड़ी अकड़ बनाए हुए है आंखों की।
  ...और लंगड़ा सोच रहा था कि इस अंधे की टाँग कैसे तोड़ दूं।
तभी ईश्वर पधारे।
उसने पूछा पहले अंधे से...
उसने सोचा कि जब मैं अंधे से पूछंगा कि तू कोई एक वरदान मांग ले...
...तो वह मांगेगा वरदान कि मेरी आंखें ठीक कर दो।
या कि मेरे लँगड़े मित्र की टाँगें अच्छी हो जाय।
जब उसने अंधे से कहा कि तू एक वरदान मांग ले।
...तो अंधे ने कहा कि 'हे प्रभु! जब दे ही रहे हों—इतना दिल दिखा रहे ही हो, तो एक काम करो कि इस लंगड़े की आंखें फोड़ दो'
...और यही लंगड़े ने भी किया।
ईश्वर तो बहुत चौंका।
तभी से तो नीचे...
पृथ्वी पर आता नहीं कि ये बड़े खतरनाक है।
ये दुनिया...सबलोग...
सचमें..हैं...
"ख त र ना क"

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