संदेश

नवंबर, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विभीषणकृत हनुमानस्तोत्रं Vibheeshan krit Hanumaan stotram

नमो हनुमते तुभ्यं नमो मारुतसूनवे। नम: श्रीरामभक्ताय श्यामास्याय च ते नम:॥ नमो वानरवीराय सुग्रीवसख्यकारिणे। लङ्काविदाहनार्थाय हेलासागरतारिणे॥ सीताशोकविनाशाय राममुद्राधराय च। रावणान्तकुलच्छेदकारिणे ते नमो नम:॥ मेघनादमखध्वंसकारिणे ते नमो नम:। अशोकवनविध्वंसकारिणे भयहारिणे॥ वायुपुत्राय वीराय आकाशोदरगामिने। वनपालशिरश्छेदलङ्काप्रासादभञ्जिने॥ ज्वलत्कनकवर्णाय दीर्घलाड्गूलधारिणे। सौमित्रिजयदात्रे च रामदूताय ते नम:॥ अक्षस्य वधकत्र्रे च ब्रह्मपाशनिवारिणे। लक्ष्मणाङ्गमहाशक्तिघातक्षतविनाशिने॥ रक्षोघ्राय रिपुघनय भूतघनय च ते नम:। ऋक्षवानरवीरौघप्राणदाय नमो नम:॥ परसैन्यबलघनय शस्त्रास्त्रघनय ते नम:। विषघनय द्विषघनय ज्वरघनय च ते नम:॥ महाभयरिपुघनय भक्तत्राणैककारिणे। परप्रेरितमन्द्दाणां यन्द्दाणां स्तम्भकारिणे॥ पय:पाषाणतरणकारणाय नमो नम:। बालार्कमण्डलग्रासकारिणे भवतारिणे॥ नखायुधाय भीमाय दन्तायुधधराय च। रिपुमायाविनाशाय रामाज्ञालोकरक्षिणे॥ प्रतिग्रामस्थितायाथरक्षोभूतवधार्थिने। करालशैलशस्त्राय द्रुमशस्त्राय ते नम:॥ बालैकब्रह्मचर्याय रुद्रमूर्तिधराय च। विहंगमाय सर्वाय वज्रदेहाय ते नम:॥

बजरंग बाण Bajrang Baan

बजरंग बाण के पाठ से न केवल भयंकर शारीरिक पीड़ा और कष्ट, डर, दरिद्रता, भूत-प्रेत बाधाओं से छुटकारा मिल जाता है, बल्कि व्यक्ति की हर भौतिक व सांसारिक कामनाओं की पूर्ति और मनोरथ पूरे होते हैं |  अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए यह जप सप्ताह में एक दिन मंगलवार को अवश्य करे और निश्चित लाभ उठावे ।    बजरंग बाण श्रीराम ध्यान अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं। दनुज वन कृशानुं , ज्ञानिनामग्रगण्यम्।। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं। रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।। दोहा निश्चय प्रेम प्रतीति ते , विनय करैं सनमान। तेहि के कारज सकल शुभ , सिद्ध करैं हनुमान।। चौपाई जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।। जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।। जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।। आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।। जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।। बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।। अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।। लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।। अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु

कार्तिकेय स्तोत्रं

श्री कार्तिकेय स्तोत्रं स्कन्द उवाच। योगिश्वरो महासेनः कार्तिकेयोऽग्निनन्दनः। स्कन्दः कुमारः सेनानीः स्वामी शङ्करसम्भवः॥१॥ गाङ्गेयस्ताम्रचूडश्च ब्रह्मचारी शिखिध्वजः। तारकारिरुमापुत्रः क्रौञ्चारिश्च षडाननः॥२॥ शब्दब्रह्म समुद्रश्च सिद्धः सारस्वतो गुहः। सनत्कुमारो भगवान् भोगमोक्षफलप्रदः॥३॥ शरजन्मा गणाधीशपूर्वजो मुक्तिमार्गकृत्। सर्वागमप्रणेता च वञ्छितार्थप्रदर्शनः॥४॥ अष्टाविंशतिनामानि मदियानीतियः पठेत्। प्रत्यूषं श्रद्धया युक्तो मूको वाचस्पतिर्भवेत॥५॥ महामन्त्रमयानीति मम नामानुकीर्तनम्। महाप्रज्ञामवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा॥६॥ ॥ इति श्रीरुद्रयामले प्रज्ञाविवर्धनाख्यं श्रीमत्कार्तिकेयस्तोत्रं सम्पूर्णं॥