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छान्दोग्योपनिषद् ( द्वितीय प्रपाठक, प्रथम खण्ड से द्वादश खण्ड ), हिन्दी भावार्थ सहित

छान्दोग्योपनिषद् द्वितीय प्रपाठक प्रथम खण्ड समस्तस्य खलु साम्न उपासनँ साधु यत्खलु साधु तत्सामेत्याचक्षते यदसाधु तदसामेति ॥ २. १. १ ॥ तदुताप्याहुः साम्नैनमुपागादिति साधुनैनमुपागादित्येव तदाहुरसाम्नैनमुपागादित्यसाधुनैनमुपगादित्येव  तदाहुः ॥ २. १. २ ॥ अथोताप्याहुः साम नो बतेति यत्साधु भवति साधु बतेत्येव तदाहुरसाम नो बतेति यदसाधु भवत्यसाधु बतेत्येव  तदाहुः ॥ २. १. ३ ॥ स य एतदेवं विद्वानसाधु सामेत्युपास्तेऽभ्याशो ह यदेनँ साधवो धर्मा आ च गच्छेयुरुप च नमेयुः ॥ २. १. ४ ॥    सभी प्रकार के साम की उपासना श्रेष्ठ है। जो सर्वोत्तम है, वही साम है। जो अश्रेष्ठ है वह अ-साम है। अतः यह समझना चाहिए कि उत्तम उच्चारण और  गान का नाम ही साम है। उत्तम साधू, विचारक और लौकिक जगत के महापुरुष भी यही कहते हैं कि साम की कृपा से प्राप्त हुआ, साम की कृपा से आया । या वेद-नारायण की कृपा से आया । लोक व्यवहार में साम का अर्थ साधु अर्थ में लिया जाता है। शुभ तथा साधु साम तथा अशुभ व असाधु अ-साम हैं, ऐसा समझना चाहिए। जो सामवेद तथा सामगान की महिमा को जानकार ऎसी उपासना करे उसे प्रत्