समानता कबीर और बुद्ध की।

कबीर और बुद्ध
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मन रे जागत रहिये भाई।
गाफिल होइ बसत मति खोवै।
चोर मुसै घर जाई।
षटचक्र की कनक कोठरी।
बस्त भाव है सोई।
ताला कुंजी कुलक के लागै।
उघड़त बार न होई।
पंच पहिरवा सोई गये हैं,
बसतैं जागण लागी,
जरा मरण व्यापै कछु नाही।
गगन मंडल लै लागी।
करत विचार मन ही मन उपजी।
ना कहीं गया न आया,
कहै कबीर संसा सब छूटा।
राम रतन धन पाया।

बुद्ध एक गांव के पास से गुज़रे।
लोगों ने गालियाँ दी,अपमान किया।
बुद्ध ने कहा,क्या मैं जाऊँ,अगर बात पूरी हो गई हो?क्योंकि दूसरे गांव मुझे जल्दी पहुँचना है। लोगो ने कहा,
हमने भद्दे से भद्दे शब्दों का प्रयोग किया है,
क्या तुम बहरे हो गए?
क्या तुमने सुना नहीं?
बुद्ध ने कहा कि सुन रहा हूँ।पूरे गौर से सुन रहा हूँ।
इस तरह सुन रहा हूँ,जैसा पहले मैने कभी सुना ही न था, लेकिन तुम ज़रा देर करकेआए।
दस साल पहले आना था।
अब मैं जाग गया हूँ।
अब चोरों को भीतर घुसने का मौका न रहा।
तुम गाली देते हो।
मैं देखता हूँ।
गाली मेरे तक आती है और लौट जाती है।
 ग्राहक मौजूद नहीं है ।
तुम दुकानदार हो।
तुम्हें जो बेचना है, तुम ले आए हो।
लेकिन ग्राहक मौजूद नहीं है।
ग्राहक दस साल हुए मर गया।
पीछे के गांव में कुछ लोग मिठाइयां लाए थे।
मेरा पेट भरा था,तो मैने उससे कहा,वापिस ले जाओ।
मैं तुमसे पूछता हूं, वे क्या करेगें?
किसी ने भीड़ में से कहा, जाकर गांव में बांंट देंगे,खा लेंगे। बुद्ध ने कहा,तुम क्या करोगे?
तुम गालियों के थाल सजाकर लाए।
मेरा पेट भरा है। दस साल से भर गया।
तुम ज़रा देर करके आए।अब तुम क्या करोगे?
इन गालियों को वापिस ले जाओगे, बांटोगे,
या खुद खाओगे?
मैं नहीं लेता।
तुम गलत आदमी के पासआ गये।

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