अरे ओ निष्ठुर !
ओह ! दया करो अब तो.. कितना...? कितना तो काम कराते हो यार जब से आया हूँ यहाँ सारा-सारा दिन और रात चौबीसो घण्टे खटवाते हो.. बीस-इक्कीस हजार बार साँस खिंचवाते-छुड़वाते हो कि दिल मेरा बजने लगता बहत्तर बार धाड़-धाड़ शायद... डरता है तुमसे तभी तो चार सौ की स्पीड से भागता है मेरा खून भी नौ हजार छः सौ किलोमीटर तक रोज कोई छुट्टी नहीं न कोई ऑफ़ ओह ! सचमुच तुम कितना काम कराते हो अब तो बख्श दो.. अरे ओ निष्ठुर ! ईश्वर कहीं के..