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भइयालाल के शून्य

हर पुराना किस्सा भी इतिहास की ही तरह अपने आप को दोहराता है। तीस-चालीस बरस पहले जिसको हम नई कविता और नई कहानी कह के पढ़ते थे वह आज भी नई हैं और उन्होंने इतने लंबे समय में कई बच्चे दे दिए हैं। उन बच्चों के नाती-पोते आज फिर नई कहानी की तरह सामने हैं। किस्सागो अब रहे नहीं पर किस्सागोई जारी है। सुनें-- एक बहुत बड़ा दानी था, शायद कर्ण के जैसा। वही अपना कर्ण..! वह किस्सा तो सुना ही है आपने..। जिसमें मृत्यु के अंतिम क्षणों में भी ब्राह्मण के रूप में परीक्षा लेते श्रीकृष्ण के माँगने पर अपने सोने के दाँत तोड़ कर दान दे दिए थे उसने।  अपने शत्रु के लिए भी शरीर से कवच और कुंडल चीरकर दान में दे दिया था।  खैर यह बहुत पुरानी बात है। पर किसी दानी का किस्सा अगर आज हो तो कैसे होगा? उसकी बानगी देखिए। वैसे भी नई कहानी के लिए कुछ तो नया होना ही चाहिए। बिल गेट्स का नाम तो सुना ही है हम सब नेे, और यह भी सुना कि बहुत बड़े दानी हैं, अपनी अरबों डॉलर की संपत्ति दान में दे चुके हैं फिर भी बहुत खुश हैं। भारत माता ने भी कई दानियों सहित इस कलियुग में अजीम प्रेमजी जैसे दानी को जन्म दिया है। अरे! मैं भी किस्स

कल आना: एक कहानी आज की

आज दफ्तर में मीटिंग के दौरान एक छोटी सी घटना घटी। चूँकि मैं रेल वैगन कारखाने में कार्य करता हूँ तो प्रतिदिन सुबह ही कार्य की रूपरेखा बना ली जाती है। मेरे एक इंजीनियर साथी से जब प्रोडक्शन इंजीनियर ने पूछा कि "आप दो दिन से रोज कहते हैं कि कल यह वैगन कम्पलीट हो जाएगा और आज फिर वही कह रहे हैं कि कल हो जाएगा, आखिर कब आएगा आपका कल"? ..तो मुझे अपने बचपन मे पढ़ी 'धर्मयुग' की एक कहानी याद आ गई। मुझे याद है कि उन दिनों धर्मयुग का आकार व साइज अखबार जितना होता था। हाँ! तो मैं बात कर रहा था उस कहानी की.. कुछ इस प्रकार थी वो... एक बुढ़िया थी। सच में अत्यंत बूढ़ी, पर अत्यंत चतुर और हँसमुख। कमर झुककर उसकी दोहरी सी हो गई थी।अवस्था भी सौ साल के आसपास ही रही होगी। सर से पाँव तक पूरे शरीर में झुर्रियाँ ही झुर्रियाँ, पर बेजान आँखों में जीवन की चमक अभी भी विद्यमान थी। छोटी सी टूटी-फूटी झोपड़ी में अपने दिन गुजार रही थी। दिन भर लकड़ियाँ बीनती। आसपास के घरों में भी पहुँचा देती। लोगों का छोटा-मोटा काम कर देती, बदले में लोग मुट्ठी भर अन्न दे देते या कभी बची हुई रोटियाँ। उसका काम चल जाता था।