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नारायणहृदयस्तोत्रं Narayan hriday stotram

अल्प लोगों को ज्ञात इस श्लोक का पाठ सचमुच आश्चर्यचकित करने वाले सुपरिणाम देता है | इसका प्रयोग वास्तव में सुबुद्धि प्रदान करता है | प्रत्येक शुक्रवार को लक्ष्मीहृदयस्तोत्र सहित तय नियमों के साथ पढ़ा जाने पर यह दिव्य शक्ति,सिद्धि, आरोग्य,तथा दीर्घायु भी प्रदान करता है | नारायणहृदयस्तोत्रं ॐ अस्य श्री नारायणहृदयस्तोत्रमंत्रस्य भार्गव ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीलक्ष्मीनारायणो देवता, श्री लक्ष्मीनारायण प्रीत्यर्थ जपे विनियोगः| करन्यास:- ॐ नारायणः परम् ज्योतिरित्यन्गुष्ठाभ्यनमः| ॐ नारायणःपरम् ब्रह्मेति तर्जनीभ्यानमः|ॐ नारायणः परो देव इति मध्य्माभ्यान्मः |ॐ नारायणःपरम् धामेति अनामिकाभ्यान्मः |ॐ नारायणः परो धर्म इति कनिष्टिकाभ्यान्मः|ॐ विश्वं नारायणःइति करतल पृष्ठाभ्यानमः| एवं हृदयविन्यासः | ध्यानं उद्ददादित्यसङ्गाक्षं पीतवाससमुच्यतं | शङ्ख चक्र गदापाणिं ध्यायेलक्ष्मीपतिं हरिं || 'ॐ नमो भगवते नारायणाय ' इति मन्त्रं जपेत् | श्रीमन्नारायणो ज्योतिरात्मा नारायणःपरः

हनुमान बाहुक Hanumaan Bahuk

  गोस्वामी तुलसी दास जी द्वारा विरचित अत्यंत आश्चर्यचकित कर देने वाला सिद्ध मन्त्र है यह | सच्चे मन से हनुमान जी की इस बाहुक से आराधना करते ही सभी प्रकार की पीडाओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यह अचूक है , श्रद्धा से इसका पाठ करें और चमत्कार देखे |  हनुमान बाहुक छप्पय सिंधु तरन , सिय-सोच हरन , रबि बाल बरन तनु । भुज बिसाल , मूरति कराल कालहु को काल जनु ।। गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक , बंक-भुव । जातुधान-बलवान मान-मद-दवन पवनसुव ।। कह तुलसी दास सेवत सुलभ सेवक हित सन्तत निकट । गुन गनत , नमत , सुमिरत जपत समन सकल-संकट-विकट ।।१।। स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रवि तरुन तेज घन । उर विसाल भुज दण्ड चण्ड नख-वज्रतन ।। पिंग नयन , भृकुटी कराल रसना दसनानन । कपिस केस करकस लंगूर , खल-दल-बल-भानन ।। कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति विकट । संताप पाप तेहि पुरुष पहि सपनेहुँ नहिं आवत निकट ।।२।। झूलना पञ्चमुख-छःमुख भृगु मुख्य भट असुर सुर , सर्व सरि समर समरत्थ सूरो । बांकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली , बेद बंदी बदत पैजपूरो ।। जासु गुनगाथ रघुनाथ कह जासुबल , बिपुल जल भरित जग जलधि झूरो । दुवन दल दमन को कौन तुलसीस

शीतलाष्टकम् SHEETALASHTAKAM

                    शीतलाष्टकम्      SHEETALAASHTAKAM अस्य श्री शीतलास्तोत्र मन्त्रस्य महादेव ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः शीतला दे वीं महालक्ष्मीर्बीजम्  श्रीभवानी शक्तिः सर्वाविस्फोटकनिवृत्तये जपे विनियोगः ।               ॥ भगवानुवाच ॥ वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बरम् । मार्जनीकलशोपेताम्    शूर्पालंकृतमस्तकाम् ॥ १ ॥ वन्देऽहं   शीतलां   देवीं    सर्वरोगभयापहाम् । यामासाद्य   निवर्तेत   विस्फोटकभयं   महत् ॥ २ ॥ शीतले   शितले   चेति   यो   ब्रूयद्दाहपीडितः । विस्फोटकभयं   घोरं   क्षिप्रं   तस्य प्रणश्यति ॥ ३ ॥ यस्त्वामुद्कमध्ये   तु   धृत्वा   पूजयते    नरः । विस्फोटकभयं   घोरं   गृहे   तस्य   न   जायते ॥ ४ ॥ शीतले    ज्वरदग्धस्य     पूतिगन्धयुतस्य   च । प्रणष्टचक्षुषः        पुंसस्त्वामाहुर्जीवनौष्धम् ॥ ५ ॥ शीतले तनुजान्रोगान् नृणां हरसि दुस्त्यजान् । विस्फोटकविदिर्णानां    त्वमेकाऽमृतवर्षिणी ॥ ६ ॥ गलगण्डग्रह्या रो

श्री सूक्तं shree suktam

      नवरात्रि के दिनों से आरंभ करके इस स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत उत्तम माना गया है | वैसे इसे कभी भी आरम्भ  किया जा सकता है | देवी की पूजा, आरती के दौरान इस श्रीसूक्त का पाठ करें | यह दरिद्रता और आर्थिंक परेशानियों से निवृत्ति  के लिए बहुत  प्रभावकारी माना जाता है।  इतना ही नहीं , इसके सच्चे ह्रदय एवं श्रद्धा के साथ नित्य पाठ से  मनुष्य की आयु बढती है और वह शतायु होता है |                                                       श्री सूक्तं  हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् । चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ।1।   तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।2। अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ।3।   कांसोस्मि तां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् । पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ।4।   चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलंतीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् । तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।5।   आदित्यवर्णेतपसोऽधिजा