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छान्दोग्योपनिषद (तृतीय प्रपाठक, चतुर्थ खण्ड एवं पञ्चम खण्ड का हिन्दी भावार्थ सहित)

          चतुर्थ खण्ड अथ येऽस्योदञ्चो रश्मयस्ता एवास्योदीच्यो मधुनाड्योऽथर्वाङ्गिरस एव मधुकृत इतिहासपुराणं पुष्पं ता अमृता आपः ॥ ३. ४. १ ॥    इसकी उत्तर की किरणें ही उत्तर की मधुनाड़ियाँ हैं, अथर्ववेद भ्रमर और इतिहास-पुराण इसके पुष्प के समान है।  ते वा एतेऽथर्वाङ्गिरस एतदितिहासपूराणमभ्यतपँ स्तस्याभितप्तस्य यशस्तेज इन्द्रियां वीर्यमन्नाद्यँरसोऽजायत ॥ ३. ४. २ ॥    अथर्व वेद के मन्त्र इन्ही इतिहास और पुराण रुपी भ्रमर के अमृत रस का चूषण करते हैं। इनके अभितप्त होने से ही यश, तेज, ऐश्वर्य, इन्द्रियों की शक्ति, वीर्य और अन्नरुपी रस उत्पन्न होता है।  तद्व्यक्षरत्तदादित्यमभितोऽश्रयत्तद्वा एतद्यदेतदादित्यस्य परं कृष्णँरूपम् ॥ ३. ४. ३ ॥    यही रस निर्झर होकर आदित्य के चारों ओर एकत्रित हो गया है। यही सूर्यनारायण का कृष्ण स्वरुप है जिनकी हम सब उपासना करते हैं।  ॥ इति चतुर्थ खण्ड ॥                        पञ्चम खण्ड अथ येऽस्योर्ध्वा रश्मयस्ता एवास्योर्ध्वा मधुनाड्यो गुह्या एवादेशा मधुकृतो ब्रह्मैव पुष्पं ता अमृता आपः ॥ ३. ५. १ ॥               आदित्य से उर्ध्व जाने