संदेश

फ़रवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

महादेव की होली

महादेव की होली ************** फागुन आयो जब कासी में होरी खेलै तब मात चलीं। वै औघड़दानी ध्यान रहै, औ माता के करतब सूझी तब महादेव के भसम रची। सब अंग भर दई चंदन ते, कर्पूरी तन भस्माङ्ग राग त्रिपुरारी के कछु भान नहीं। जे भसम उरी,पड़ी अखियन में तब सरपराज फुफकार भरी। बिष की फुरकी छुई चंदा पै दुइ बूँद सुधा तब टपक परी। ज्यों अमिय ने चूमि मृगछाला बस सुन्दर जीवित हरिन बनी। वै हरिन छलावा बन बन में धावत सरपट लै जनम नई। तब भए दिगम्बर अड़भंगी औ लाज लगी सब भक्तन के तब जय जय जय जयकार भई। सब देव पुष्प बरसात करी सिवसंभू तब खोले लोचन सब लोकन पर उपकार करी। अईसे रस बरसे फगुआ के जब सिव-संकर खेलें होरी। ******** यह कथानक है तब का जब महादेव ने श्रीहरि के समझाने पर तपस्यारत हिमालय पुत्री से विवाह किया और गौना करके माता पार्वती को स्वनगरी काशी ले आए थे। बैरागी अघोरी प्रभु ध्यान में, समाधि में मग्न हैं। जगतजननी माता पार्वती और महादेव के गण अपने प्रभु से होली खेलने को उत्सुक हैं पर शिवशम्भू का ध्यान है कि टूटता ही नहीं। माता को ठिठोली सूझती है.. नंदी आदि गणों को साथ लेकर वे समाधिस्थ श