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छान्दोग्योपनिषद् (द्वितीय प्रपाठक, त्रयोदश खण्ड से चतुर्विंश खण्ड सम्पूर्ण) हिंदी भावार्थ सहित

                                त्रयोदश खण्ड उपमन्त्रयते स हिंकारो ज्ञपयते स प्रस्तावः स्त्रिया सह शेते स उद्गीथः प्रति स्त्रीं सह शेते स प्रतिहारः कालं गच्छति तन्निधनं पारं गच्छति तन्निधनमेतद्वामदेव्यं मिथुने प्रोतम् ॥ २. १३. १ ॥ स य एवमेतद्वामदेव्यं मिथुने प्रोतं वेद मिथुनी भवति मिथुनान्मिथुनात्प्रजायते सर्वमायुरेति ज्योग्जीवति महान्प्रजया पशुभिर्भवति महान्कीर्त्या न कांचन परिहरेत्तद्व्रतम् ॥ २. १३. २ ॥ स्त्री तथा पुरुष के परस्पर संसर्ग का प्रतिक्षण भी हिंकार, प्रस्ताव व उद्-गीथ रुपी वामदेव्य साम ही है। इन्हें पति व पत्निव्रत धारण करना चाहिए।    ऐसे वामदेव्य साम को जानने वाले सद्-गृहस्थ को वेद मिथुन कहा जाता है। ऐसे दम्पति का आपस में वियोग नहीं होता, अर्थात वे विधुर या विधवा नहीं होते। विवाहित से ही उत्पन्न होते हैं, दीर्घायु होते हैं और महान कीर्तिवान होते हैं। इनके लिए परस्त्री पर कुदृष्टि न डालना तथा किसी भी प्रकार के व्यभिचार से दूर रहना ही व्रत है।         चतुर्दश खण्ड उद्यन्हिंकार उदितः प्रस्तावो मध्यंदिन उद्गीथोऽपराह्णः प्रतिहारोऽस्तं यन्निधनमेतद्बृहदा