इलेक्शन ड्यूटी
पढ़े...तनाव कम करें और आनंद लें। ************************ सरकारी कर्मचारी.. पीड़ा की पराकाष्ठा है ये अनायास ही आ गया उपचुनाव। दो हफ्ते पहले तक जब ड्यूटी की लिस्ट रेलवे में पहुँची नहीं तो कुछ बुद्धिमान कर्मचारियों के रिमार्क्स कुछ ऐसे थे। "अरे! अब नहीं आएगी, ये स्टेट वालों ने टीए कमाने के लिए अपने-अपनी लगा ली है यार। वैसे भी ये उपचुनाव है, ज्यादा कर्मचारियों की जरूरत तो है नहीं।" "अभी आ सकती है, पिछली बार तीन-चार दिन पहले तक आई थी" फिर एक दिन.... किसी बाबू ने जैसे बम पटक दिया... सत्तर लोगों की लिस्ट आ गई। सबने नोट किया, जो बचे... खुश हुए। तीन दिन बाद एक और लिस्ट। बड़े-बड़े तुर्रम खां इस बार लिस्ट में थे... कुछ ने प्रशासन को गालियाँ बक कर अपना गुबार निकाला, भारी मन से प्रशिक्षण की तारीख नोट कर ली। अब तो चार दिन ही बचे थे। जिनका नाम नहीं आया वे अपने आपको वी.आई.पी. समझ रहे थे। फिर अचानक... उन वी.आई.पी.की भी आ ही गई.. अरे...मौत नहीं..., इलेक्शन ड्यूटी.. शाश्वत सत्य है यह तो... कोई नहीं बचा है, जाना तो सबको है। मृत्यु और चुनाव ड्यूटी ने कभी किसी को छोड़ा ह...