आस्था..श्रद्धा और विश्वास।
एक गाँव था... छोटा सा। गाँव मे एक वृद्ध साधुबाबा भी रहते थे। गाँव से थोड़ी सी दूरी पर एक मंदिर था, बड़ा दिव्य। वह बाबाजी उसमें कन्हैया की पूजा-अर्चना करते। प्रतिदिन का उनका एक नियम था कि अपनी झोपड़ी से निकल कर के मंदिर जाते और सायंकाल भगवान के सम्मुख दीपक जलाते। उसी गांव में एक नास्तिक व्यक्ति भी रहता था। जैसे ही वह साधु दीपक जलाते और घर के लिए वापस निकलते, यह व्यक्ति भी प्रतिदिन मंदिर में जाकर दीपक को बुझा देता था। साधु ने कई बार उसे समझाने का प्रयत्न किया पर वह व्यक्ति कहता- भगवान हैं तो स्वयं ही आकर मुझे दीपक बुझाने से क्यों नहीं रोक देते। बड़ा ही नास्तिक है तू... कहते वे भी निकल जाते। यह क्रम महीनों, वर्षों से चल रहा था । एक दिन की बात, मौसम कुछ ज्यादा ही खराब था, आँधी और तूफान के साथ मूसलाधार वर्षा ज्यों थमने का नाम ही न ले रही थी। साधू ने बहुत देर तक मौसम साफ होने की प्रतीक्षा की, और सोचा... "इतने तूफान में यदि मैं भीगते, परेशान हुए मंदिर गया भी और दीपक जला भी दिया तो वह शैतान नास्तिक आकर बुझा ही देगा.. "रोज ही बुझा देता है" अब आज नहीं जाता हूँ। कल ...