कथा 1

सती के रूप में दक्षयज्ञ में अपने प्राण त्यागने के पश्चात शक्ति ने पार्वती के रूप में हिमाचल के घर जन्म लिया। घनघोर तप कर पुनः शिव को प्राप्त किया।
पूर्व जन्म के संदेह को याद कर पुनः शिव से पूछा-

तुम्ह पुनि राम राम दिन राती।
सादर जपहु अनँग आराती॥
रामु सो अवध नृपति सुत सोई।
की अज अगुन अलखगति कोई॥

है प्रभु! हे कामदेव के शत्रु! आप दिन-रात राम-राम जपा करते हैं- ये राम वही अयोध्या के राजा के पुत्र हैं? या अजन्मे, निर्गुण और अगोचर कोई और राम हैं?॥

तब शिव ने पार्वती जी को राम कथा सुनाई। बोले-

बंदउँ बालरूप सोइ रामू।
सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू॥
मंगल भवन अमंगल हारी।
द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी॥

मैं उन्हीं श्री रामचन्द्रजी के बाल रूप की वंदना करता हूँ, जिनका नाम जपने से सब सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं। मंगल के धाम, अमंगल के हरने वाले और श्री दशरथजी के आँगन में खेलने वाले बालरूप श्री रामचन्द्रजी मुझ पर कृपा करें॥

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सप्तश्लोकी दुर्गा Saptashlokee Durga

नारायणहृदयस्तोत्रं Narayan hriday stotram

हनुमत्कृत सीतारामस्तोत्रम् Hanumatkrit Sitaram stotram