भगवान आखिर क्यों नहीं सुनते हमारी

भगवान आखिर क्यों नहीं सुनते हमारी
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मैं तो प्रति...दिन सुबह जल्दी भोर ही उठ जाता हूँ।
फिर नहा धो कर आपके मंदिर में घण्टी बजाता हूँ।

सोया हुआ समझकर भगवान् को जगाता हूँ।
और गंगाजली उठाकर स्नान भी कराता हूँ।

स्वच्छ पंचामृत से मैने चरण उनके धोए है
चंदन से टीका तिलक करना मैं कभी भूला नहीं,

नित नए नूतन वस्त्र भी मैने उन्हें पहनाए हैं
और गंध, अक्षत मिलाकर ये पुष्प भी तो चढ़ाए हैं।

पर क्यों नही सुनता मेरी तू....

अक्सर सभी के मन में यह प्रश्न रहता हैं कि हम दिन-रात भगवान से प्रार्थना करते हैं लेकिन भगवान हमारी प्रार्थना सुनते क्यों नहीं हैं ?

पर ये तय है कि भगवान हमारी हर प्रार्थना सुनते है, लेकिन उसमें प्रेम हो, करुणा हो, और सबसे बढ़कर पूर्ण समर्पण हो, अर्थात भक्ति का भाव हो। चाहे वह निष्काम ही या सकाम।

हम कितना भी मनका फेर लें, हम चाहे लाख बार राम कहे, चाहे करोड़ बार, लेकिन यदि एक बार ह्रदय से राम नाम कहा गया तो वो राम नाम लाख बार नाम लेने से कहीं अधिक होगा।

भगवान हमारे मन की बात जानते है क्योंकि वहीं तो वे विराजते हैं।

यह भी तय है कि कई सौ बार राम का नाम लेने पर कोई एक आध बार ही स्थितियाँ ऐसी बनती है कि जब वह नाम उनके परम ध्यान के साथ लिया गया हो अन्यथा अधिकांश बार मुँह पर राम के नाम के साथ मस्तिष्क में घर, गृहस्थी, ऑफिस और दुनियादारी ही चलती रहती है।

भगवान ने बड़ी सीधी बात कही है।
उन्हें कोई ढोंग और दिखावा पसंद ही नहीं है।
वे कहते हैं-

निर्मल मन जन सो मोहि पावा,
मोहि कपट छल छिद्र न भावा।

जब तक मन शुद्ध नहीं होगा, कितनी भी पूजा अर्चना की जाय, लाभ होने कठिन है।

मीरा बाई जब भगवान कृष्ण के भजन गाती थी तो उसमें डूब जाती थी,यही ध्यान की परमस्थिति है।

सूरदास जी जब पद गाते थे तब भी भगवान सुनते थे।उनसे बातें भी किया करते थे।

निराकार राम के उपासक कबीरदास जी ने तो कहा है कि-

एक चींटी कितनी छोटी होती है, अगर उसके पैरों में भी घुंघरू बाँध दे तो उसकी आवाज को भी भगवान सुनते है।

उनको पुकारने के लिए ढोल, नगाड़े और लाउडस्पीकर की आवश्यकता नहीं है।

यहाँ तक कि मन में ही उसे पुकार लें तो भी प्रार्थना वहाँ तक पहुंचती है, इसमे कोई संशय नहीं है। प्रभु की मानसिक पूजा को सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है।

एक छोटी सी कथा है :-

एक भक्त श्री हरिदास हुए हैँ, उन्होंने 20 साल तक लगातार नारायण कवच का पाठ नित्य, बड़ी श्रद्धा के साथ किया।

भगवान ने उनकी परीक्षा लेते हुए कहा -
अरे भक्त! तुझे क्या लगता है,  मैं तेरे पाठ से प्रसन्न हूँ, तो ये तेरा वहम है।
मैं तेरे पाठ से बिलकुल भी प्रसन्न नही हुआ।

जैसे ही भक्त हरिदास ने सुना तो वो नाचने लगे, गाने लगे और झूमने लगे।

भगवान बोले-
 तू निरा पागल है, मैंने कहा मैं तेरे पाठ करने से प्रसन्न नही हूँ और तू नाच रहा है।
हरिदास बोले "प्रभ!आप प्रसन्न हो या नहीं हो ये बात मैं नही जानता लेकिन मैं तो इसलिए नाच कर प्रसन्न हूँ कि आपने मेरा पाठ कम से कम सुना तो सही।

ये होता है निष्काम भक्ति का भाव...

गजेंद्र- ग्राह की कथा तो आपने सुनी ही है।

जब गजेन्द्र हाथी ने ग्राह से बचने के लिए भगवान को रोकर पुकारा तो क्या भगवान ने नहीं सुना.?

बिल्कुल सुना और भगवान अपना भोजन छोड़कर नंगे पैर दौड़े चले आये।

इसी प्रकार जब द्रौपदी  ने भगवान कृष्ण को पुकारा तो भगवान ने नहीं सुना ?

दुःशासन उसके बाल खींचता रहा...द्रौपदी भगवान को पुकारती और साथ ही अपने पूरे बल से विरोध भी करती रही।

चीरहरण के समय भी वो कृष्ण को पुकारती रही और अपने दोनों हाथों से , अपने दांतों से वस्त्र को बचाती रही।
पर जब उसने पूर्ण समर्पण श्रीकृष्ण के चरणों मे कर दिया तो ....
भगवान ने सुना भी और लाज भी बचाई ।

जब भी भगवान को याद करें , पूर्ण समर्पण और प्रेम भाव से ही उनका नाम नाम संकीर्तन और जप करें।

कोई संदेह मत करें बस ह्रदय से उनको पुकारें।

वे अवश्य आपकी सुन रहे हैं, सुनेंगे। यह तय ही है।

यदि किसी कारणवश वे नहीं सुन रहे हैं तो इसमें भी कुछ अच्छा ही है।क्योंकि उन्हें पता है कि आप के लिए अच्छा क्या है।

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