मंत्र पुष्पाञ्जलि


            मंत्र पुष्पाञ्जलि

यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासान्।
ते नाकं महिमान: सचंत। यत्र पुर्वे साध्या: संति देवा:
राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।
मे कामान् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु।
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नम:
स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं माहाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायी स्यात सार्वभौम: सार्वायुषान्तादापरार्धात्।
पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताया एकराडिती तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुत: परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन् गृहे। आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति।
विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत  विश्वतस्पात्
सं बाहुभ्यां धमति सं पट त्रै त्रैर्द्यावाभूमी जनयन् देव एकः
महालक्ष्म्यै विद्महे विष्णुपत्न्यै धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्
महालक्ष्म्यै नमः, मंत्रपुष्पाञ्जलि पुष्पं समर्पयामि

टिप्पणियाँ

Journalist Central India ने कहा…
अतिश्रेष्ठ। व्याकरण की दृष्टि से एकदम शुद्ध है। कृपया इसका श्लोकवार अर्थ भी दें तो बहुत अच्छा होगा।
सत्यवान महाराज ने कहा…
बहुत सुंदर लिखावट के साथ बहुत ही कर्णप्रिय उच्चारण है यदि इसका अर्थ भी लिखा मील जाय तो औऱ अच्छा होता।जय सियाराम

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सप्तश्लोकी दुर्गा Saptashlokee Durga

नारायणहृदयस्तोत्रं Narayan hriday stotram

हनुमत्कृत सीतारामस्तोत्रम् Hanumatkrit Sitaram stotram