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श्रीरामायण कथामृत ३

 गतांक से आगे... आज का 'प्रतिष्ठा द्वादशी' का यह दिवस हम सभी सनातनधर्मियों को गर्व और सम्मान का स्मरण कराता है। पिछले सम्वत्सर में आज पौष शुक्ल द्वादशी के दिन प्रभु श्रीरामलला की अयोध्या में जन्मस्थान पर प्रतिष्ठा हुई थी। आज के शुभ दिन श्रीरामायणकथामृत का यह भाग तीसरा भाग प्रकाशित करके मन बड़ा प्रसन्न है। ४ दशरथजी की प्रसन्नता का पारावार न था। हर्षातिरेक उनके ओष्ठ कम्पित हो रहे थे, उन्होंने सुमन्त्र को बुलाकर कहा –  “समस्त वेदों के प्रवीण ब्रह्मवादी ब्राह्मणों तथा ऋत्विजों को निमंत्रण दीजिए। कुलगुरु वसिष्ठजी को आदर सहित आने हेतु मेरा निवेदन कहिये।” प्रसन्नचित्त सुमन्त्र ने तुरंत ही राजा के आदेशों का पालन किया। ऋषिवर सुयज्ञ, जाबालि, काश्यप, वामदेव और वसिष्ठजी राजा के आनंद को बढ़ाने हेतु वहाँ पधारे । राजा ने हाथ जोड़े और शीश झुकाकर सबका अभिनन्दन किया। सबको आसन पर बैठाकर विधिवत पूजन करने के उपरान्त राजा ने मधुर वचनों द्वारा वसिष्ठ जी से प्रार्थना की-- “कुलगुरु ! आप मेरी व्यथा को समझते हैं। मुनिवर ऋष्यश्रृंङ्ग जी के प्रबल प्रताप से मैं पुत्रकामेष्टि यज्ञ करूँगा। उन्होंने इसके पूर्व ह...

श्रीरामायण कथामृत २

गतांक से आगे.. अयोध्या... यह सुंदर नगरी प्रजाजनों में अवधपुरी नाम से प्राणों से भी अधिक प्रिय और विख्यात थी। आज सूर्यनारायण अपने प्रचण्ड मार्त्तण्ड रूप में मस्तक के ऊपर दैदीप्यमान हो रहे थे, मध्याह्नकाल बीता जा रहा था। राज्यसभा समाप्त हो चुकी थी तथा राजकर्मी अपने घरों को लौटने लगे थे। राजवस्त्रों से सजे धजे एक सन्तरी ने राजभवन के बाहर गोलम्बर से टँगे उस काँसे के विशाल घण्टे पर काष्ठ के बने मारतौल से आघात किया। टन्नऽऽ  ....का तीव्र निनाद उस विशाल नगरी की सीमा तक गूँज उठा। यह राजसभा की आज की कार्यवाही के समाप्त होने का संकेत था।  प्रतिदिन उस निनाद को सुनकर कौशल्या अपने स्वामी की प्रतीक्षा करने लगती थीं, किंतु आज राजकार्य से निवृत्त होकर भी राजा दशरथ अपने कक्ष में नहीं लौटे, बहुत समय बीत चुका था।  महारानी कौशल्या को चिन्ता होने लगी, वह अपने कक्ष के द्वार पर आकर खड़ी हो गईं। मध्याह्न भोजन महाराज के लिए कौशल्या स्वयं तैयार करती थीं। अब भोजन का समय था और वह अभी लौटे न थे। महारानी किसी को भेज कर महाराज की सुध-बुध लेने का विचार ही कर रहीं थीं कि महाराज उन्हें अपने कक्ष की ओर ही आत...

श्रीरामायण कथामृत १

  सी यराम मय सब जग जानी करहुँ प्रनाम जोरि जुग पानी। आज पिंगल नामक विक्रम संवत 2081 के पौष मास की अमावस्या है। श्रीमहाभारत की कथा का वाचन और प्रतिलिपि पर इसका लेखन पूर्ण करने के पश्चात एक वर्ष से भी अधिक का समय व्यतीत हो गया है। श्रीकृष्ण कथापान के पश्चात उनके कृपाप्रसाद स्वरूप भाग्य का उदय हुआ और श्रीराम कथा का अध्ययन करने की प्रेरणा प्राप्त हुई। 'भाग छोट अभिलाष बड़' हृदय में श्रीराम के गुणों, चरित और गाथा को पढ़ने- जानने की कामना उत्पन्न हुई। श्रीराम की कथा हेतु अनेक सन्दर्भों और विस्तृत कथाओं को पढ़ने के लिए खोजने लगा। परब्रह्म श्रीराम के गुणों की गाथा अनन्त है और असंख्य टीकाओं द्वारा ऋषियों, मनीषियों ने प्रभु की कथाओं का गान किया है। मानस और वाल्मीकि रामायण के अतिरिक्त श्रीराम कथा हेतु जो सन्दर्भ और पुस्तकें उपलब्ध हैं वह हैं- अध्यात्म रामायण, आनंद रामायण, रंगनाथ रामायण, कृत्तिवास रामायण, करपात्री जी की रामायण मीमांसा, योगवशिष्ठ, भुशुण्डि रामायण, चम्पू रामायण, कम्ब रामायण और इसके अलावा भी अनेकानेक टीकाएँ सुलभ हैं। राम अनन्त अनन्त गुन अमित कथा बिस्तार। मैंने रामकथा के ...