श्री हाटकेश्वरो सदा विजयते
श्री हाटकेश्वरो सदा विजयते।
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पृथ्वीलोक के नीचे सप्त पाताल का वर्णन सनातन शास्त्रों में वर्णित है। इन सात में पहला अतल, दूसरा वितल, तीसरा सुतल, चौथा तलातल, पाँचवाँ महातल, छठा रसातल और सातवाँ पाताल । यह सभी पाताल लोक अनन्य ऐश्वर्य, सुख, शोभा तथा वैराग्य से सुशोभित हैं। श्रीब्रह्मा जी ने अलौकिक वितल पाताल में हाटक नामक अद्भुत स्वर्ण के द्वारा भगवान् हाटकेश्वर महादेव के शिवलिङ्ग को रचित-अर्चित किया था। यही नागर ब्राह्मणों के ईष्टदेव हाटकेश्वर महादेव हैं।
कालान्तर में भगवन शिव के आशीर्वाद स्वरुप इनका मंदिर प्राचीन आनर्तदेश तथा वर्तमान वडनगर स्थित है। ऐसे श्री हाटकेश्वर प्रभु का स्मरण करते हुए मैं समस्त विश्व के कल्याण की कामना करता हूँ।
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आनर्तविषये रम्यं सर्वतीर्थमयं शुभम्। हाटकेश्वरजं क्षेत्रं महापातकानाशम्।
मर्यार्हाघंत्दिलिङ्ग हाटकेनविनिर्मितम् । ख्यार्तियास्यति सर्वत्र पाताले हाटकेश्वरम् ।
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यह सत्य ही है कि यह मूल शिवलिंग पाताल में स्थित है।
सभी पाताललोक अथाह धन, सुख और अप्रतिम शोभा से परिपूर्ण हैं । कहा जाय कि यह सब लोक स्वर्ग से भी बढकर हैं तो कोई अतिश्योक्ति न होगी।
कहा जाता है कि प्रबल सूर्य और शीतल चंद्रमा भी यहाँ प्रकाश मात्र देते हैं, उनसे कभी ऊष्मा या शीत का कोई अनुभव नहीं होता।
हाटकेश्वर महादेव जहाँ पर स्थित हैं वह पाताल वितल है । इसकी भूमि रजतवर्णी है। चाँदी के सामान चमकती हुई। यहाँ भगवान् शिव शंकर हाटकेश्वर स्वरुप में अपने सभी पार्षदों और माता पार्वती के साथ निवास करते हैं । इसी स्थान के समीप एक हाटकी नाम की नदी सदा बहती है जिससे हाटक नाम का स्वर्ण निकलता है । (जाम्बुनद, शातकुंभ, हाटक, वैणव, श्रृंगशुक्तिज, जातरूप, रसविद्ध और आकरोदगत जैसे स्वर्ण के कई प्रकार होते हैं ) कहा जाता है कि अपने तपोबल के तेज से सुतल पाताल वासी महादेव के पार्षद और भूतादि गण तथा यक्ष, दैत्य तथा गन्धर्व ही इन स्वर्ण को धारण कर सकते हैं। पृथ्वीलोक में दिव्य सिद्धिप्राप्त महात्माओं के अतिरिक्त धारण करना तो दूर...यह किसी को दृश्य भी नहीं हो पाता है।
महाभारत में अर्जुन के द्वारा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में विभिन्न उत्तरी देशों पर विजय प्राप्त करने के वर्णन में इन किंपुरुषवर्ष तथा हरिवर्ष में प्राप्त जामुन की आभा वाले जाम्बुनद स्वर्ण का प्रकरण तथा कई पुराणों में पाताल लोक के हाटक स्वर्ण का वर्णन आता है।
आकाशे तारके लिंङ्ग पाताले हाटकेश्वरम्। मृत्युलोके महाकालं लिंङ्गत्रय नमोस्तुते।
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हाटकेश्वर महादेव का वर्णन स्कंदपुराण, शिवपुराण कोटिद्र संहिता, वामनपुराण एवं लिंगपुराण में भी आता है।
ब्रह्माजी द्वारा स्वर्ण शिवलिंग की स्थापना पश्चात् हाटकेश्वर महादेव की स्तुति की गई। वामनपुराण में वामन अवतार तथा दैत्यराज बलि की पाताल लोक की कथाओं के साथ इस दिव्य स्तुति का भी वर्णन है। इसका पाठ यदि कोई मनुष्य करे तो उसे अनायास ही सभी सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं। यह स्तुति इस प्रकार है--
ॐ नमोस्तु शर्वशम्भो त्रिनेत्र चारुगात्र
त्रैलोक्यनाथ उमापते दक्षयज्ञ विध्वंसकारक
कामाङ्गनाशन घोरपापप्रणाशन महापुरुष
महोग्रमूर्ते सर्वसत्वक्षयङ्कर शुभङ्कर
महेश्वर त्रिशूलधर स्मरारे गुहाधामन् दिग्वासः
महाचन्द्रशेखर जटाधर कपालमाला विभूषित शरीर वामचक्षु: क्षुभितदेव प्रजाध्यक्ष भगाक्ष्णो: क्षयङ्कर भीमसेनानाथ पशुपते कामाङ्गदाहिन् चत्वरवासिन् शिव महादेव ईशान शङ्कर भीमभव वृषध्वजः कलभप्रौढ महानाट्येश्वर भूतिरत आविक्तमुक्तक रूद्र रुद्रेश्वर स्थाणों
एकलिङ्ग कालिंदीप्रिय श्रीकण्ठ श्रीनीलकण्ठ
अपराजित रिपुभयङ्कर सन्तोषपते वामदेव
अघोर तत्पुरुष महाघोर अघोरमूर्ते शान्त सरस्वतीकान्त सहस्रमूर्ते महोद्भव विभो कालाग्ने रूद्र रौद्र हर महीधरप्रिय
सर्वतीर्थाधिवास हंस कामेश्वर केदार अधिपत्य परिपूर्ण मुचुकुन्द मधुनिवास कृपाणपाणे भयङ्कर विद्याराज सोमराज कामराज महीधर राजकन्या हृदब्जवसते समुद्राशायिन् गयामुख गोकर्ण ब्रह्मयाने सहस्र वक्त्राक्षिचरण
श्री हाटकेश्वर नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमः।
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नागर ब्राह्मण सदा ही महाशिव के भक्त रहे हैं। उनकी भक्ति और प्रमाणस्वरूप कुछ स्तोत्र बड़े प्रसिद्द हैं।
भजन्ति हाटकेश्वरं सुरभक्ति भावतोत्रये ।
भवन्ति हाटकेश्वरा: प्रमाणमत्र नागरा:।।
तथा-
गोत्र शर्मावटंकस्य, कुलश्च प्रवर: शिव:।
वेद: गणपति: देवी नव जानन्ति नागरा:।।
नागर ब्राह्मण ज्ञाति के लोगों को नौ बातों का ज्ञान आवश्यक माना जाता है।
गोत्र, शर्म, अवंटक, कुल, प्रवर, शिव, वेद गणपति एवं देवी ।
एक बार पुनः श्री हाटकेश्वर महादेव को नमन करते हुए उनसे त्रैलोक्य के कल्याण की कामना करें। 🙏
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पृथ्वीलोक के नीचे सप्त पाताल का वर्णन सनातन शास्त्रों में वर्णित है। इन सात में पहला अतल, दूसरा वितल, तीसरा सुतल, चौथा तलातल, पाँचवाँ महातल, छठा रसातल और सातवाँ पाताल । यह सभी पाताल लोक अनन्य ऐश्वर्य, सुख, शोभा तथा वैराग्य से सुशोभित हैं। श्रीब्रह्मा जी ने अलौकिक वितल पाताल में हाटक नामक अद्भुत स्वर्ण के द्वारा भगवान् हाटकेश्वर महादेव के शिवलिङ्ग को रचित-अर्चित किया था। यही नागर ब्राह्मणों के ईष्टदेव हाटकेश्वर महादेव हैं।
कालान्तर में भगवन शिव के आशीर्वाद स्वरुप इनका मंदिर प्राचीन आनर्तदेश तथा वर्तमान वडनगर स्थित है। ऐसे श्री हाटकेश्वर प्रभु का स्मरण करते हुए मैं समस्त विश्व के कल्याण की कामना करता हूँ।
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आनर्तविषये रम्यं सर्वतीर्थमयं शुभम्। हाटकेश्वरजं क्षेत्रं महापातकानाशम्।
मर्यार्हाघंत्दिलिङ्ग हाटकेनविनिर्मितम् । ख्यार्तियास्यति सर्वत्र पाताले हाटकेश्वरम् ।
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यह सत्य ही है कि यह मूल शिवलिंग पाताल में स्थित है।
सभी पाताललोक अथाह धन, सुख और अप्रतिम शोभा से परिपूर्ण हैं । कहा जाय कि यह सब लोक स्वर्ग से भी बढकर हैं तो कोई अतिश्योक्ति न होगी।
कहा जाता है कि प्रबल सूर्य और शीतल चंद्रमा भी यहाँ प्रकाश मात्र देते हैं, उनसे कभी ऊष्मा या शीत का कोई अनुभव नहीं होता।
हाटकेश्वर महादेव जहाँ पर स्थित हैं वह पाताल वितल है । इसकी भूमि रजतवर्णी है। चाँदी के सामान चमकती हुई। यहाँ भगवान् शिव शंकर हाटकेश्वर स्वरुप में अपने सभी पार्षदों और माता पार्वती के साथ निवास करते हैं । इसी स्थान के समीप एक हाटकी नाम की नदी सदा बहती है जिससे हाटक नाम का स्वर्ण निकलता है । (जाम्बुनद, शातकुंभ, हाटक, वैणव, श्रृंगशुक्तिज, जातरूप, रसविद्ध और आकरोदगत जैसे स्वर्ण के कई प्रकार होते हैं ) कहा जाता है कि अपने तपोबल के तेज से सुतल पाताल वासी महादेव के पार्षद और भूतादि गण तथा यक्ष, दैत्य तथा गन्धर्व ही इन स्वर्ण को धारण कर सकते हैं। पृथ्वीलोक में दिव्य सिद्धिप्राप्त महात्माओं के अतिरिक्त धारण करना तो दूर...यह किसी को दृश्य भी नहीं हो पाता है।
महाभारत में अर्जुन के द्वारा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में विभिन्न उत्तरी देशों पर विजय प्राप्त करने के वर्णन में इन किंपुरुषवर्ष तथा हरिवर्ष में प्राप्त जामुन की आभा वाले जाम्बुनद स्वर्ण का प्रकरण तथा कई पुराणों में पाताल लोक के हाटक स्वर्ण का वर्णन आता है।
आकाशे तारके लिंङ्ग पाताले हाटकेश्वरम्। मृत्युलोके महाकालं लिंङ्गत्रय नमोस्तुते।
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हाटकेश्वर महादेव का वर्णन स्कंदपुराण, शिवपुराण कोटिद्र संहिता, वामनपुराण एवं लिंगपुराण में भी आता है।
ब्रह्माजी द्वारा स्वर्ण शिवलिंग की स्थापना पश्चात् हाटकेश्वर महादेव की स्तुति की गई। वामनपुराण में वामन अवतार तथा दैत्यराज बलि की पाताल लोक की कथाओं के साथ इस दिव्य स्तुति का भी वर्णन है। इसका पाठ यदि कोई मनुष्य करे तो उसे अनायास ही सभी सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं। यह स्तुति इस प्रकार है--
ॐ नमोस्तु शर्वशम्भो त्रिनेत्र चारुगात्र
त्रैलोक्यनाथ उमापते दक्षयज्ञ विध्वंसकारक
कामाङ्गनाशन घोरपापप्रणाशन महापुरुष
महोग्रमूर्ते सर्वसत्वक्षयङ्कर शुभङ्कर
महेश्वर त्रिशूलधर स्मरारे गुहाधामन् दिग्वासः
महाचन्द्रशेखर जटाधर कपालमाला विभूषित शरीर वामचक्षु: क्षुभितदेव प्रजाध्यक्ष भगाक्ष्णो: क्षयङ्कर भीमसेनानाथ पशुपते कामाङ्गदाहिन् चत्वरवासिन् शिव महादेव ईशान शङ्कर भीमभव वृषध्वजः कलभप्रौढ महानाट्येश्वर भूतिरत आविक्तमुक्तक रूद्र रुद्रेश्वर स्थाणों
एकलिङ्ग कालिंदीप्रिय श्रीकण्ठ श्रीनीलकण्ठ
अपराजित रिपुभयङ्कर सन्तोषपते वामदेव
अघोर तत्पुरुष महाघोर अघोरमूर्ते शान्त सरस्वतीकान्त सहस्रमूर्ते महोद्भव विभो कालाग्ने रूद्र रौद्र हर महीधरप्रिय
सर्वतीर्थाधिवास हंस कामेश्वर केदार अधिपत्य परिपूर्ण मुचुकुन्द मधुनिवास कृपाणपाणे भयङ्कर विद्याराज सोमराज कामराज महीधर राजकन्या हृदब्जवसते समुद्राशायिन् गयामुख गोकर्ण ब्रह्मयाने सहस्र वक्त्राक्षिचरण
श्री हाटकेश्वर नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमः।
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नागर ब्राह्मण सदा ही महाशिव के भक्त रहे हैं। उनकी भक्ति और प्रमाणस्वरूप कुछ स्तोत्र बड़े प्रसिद्द हैं।
भजन्ति हाटकेश्वरं सुरभक्ति भावतोत्रये ।
भवन्ति हाटकेश्वरा: प्रमाणमत्र नागरा:।।
तथा-
गोत्र शर्मावटंकस्य, कुलश्च प्रवर: शिव:।
वेद: गणपति: देवी नव जानन्ति नागरा:।।
नागर ब्राह्मण ज्ञाति के लोगों को नौ बातों का ज्ञान आवश्यक माना जाता है।
गोत्र, शर्म, अवंटक, कुल, प्रवर, शिव, वेद गणपति एवं देवी ।
एक बार पुनः श्री हाटकेश्वर महादेव को नमन करते हुए उनसे त्रैलोक्य के कल्याण की कामना करें। 🙏
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1 प्रेम मंत्र
2 पूर्व को वापस जीतें
3 गर्भ का फल
4 प्रमोशन मंत्र
5 सुरक्षा मंत्र
6 व्यापार मंत्र
7 अच्छी नौकरी का मंत्र
8 लॉटरी मंत्र और कोर्ट केस मंत्र।