जब बसंत आता

लौट आते हमारे बाबावृक्ष
हर साल
जब बसन्त आता,
जब जाते थे परलोक भी...
इहलोक से
तब भी वे लेते थे आनंद
अपनी यात्रा का...
जो बस जरा सी
पतझड़ की मृत्यु भर ही तो थी,
आत्मा तो उनकी अजर ही थी
क्या पता था उनको
ये जीवन बसन्त फिर आएगा?
नहीं सम्भवतया..
किसी को पता नहीं होता
तुम्हें पता है? या कि मुझे?
कोई नहीं जानता...जान पाया..
तो ये मौनीबाबा कैसे जानते..?
उनसे बिखरा...छिटका,
टूटा...या कि तोड़ा गया
फूल, पत्ता और फल
सब ही तो अंतिम था न...।
हमारा प्रेम..मोह खींच लाता
उनको बार बार
जब बसंत आता
उनके नाती पोते से पत्ते
फल औ फूल फिर लद जाते
उनके कांधों पर..चिपट जाते सीने पर
फिर फिर लौट आते बाबावृक्ष
जब बसंत आता..।

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