छान्दोग्योपनिषद तृतीय प्रपाठक पञ्चदश खण्ड हिंदी भावार्थ सहित


॥ पञ्चदशः खण्डः


अन्तरिक्षोदरः कोशो भूमिबुध्नो न जीर्यति।
दिशोह्यस्य स्रक्तयः द्यौरस्योत्तरं बिलम् स एष कोशो
वसुधानःतस्तस्मिन्विश्वमिदं श्रितम् ॥ ३. १५. १
मध्य में स्थित अंतरिक्ष जिसका उदर, पृथ्वी जिसका मूल है वह कोश चिर काल स्थाई है व कभी भी नष्ट नहीं होता। दिशाएँ इसके कोण हैं, द्युलोक इसके ऊपर का छिद्र है । इस कोष में कर्मफल के धन से भरा हुआ समस्त जगत स्थित है ।
तस्य प्राची दिग्जुहूर्नाम सहमाना नाम दक्षिण
राज्ञी नाम प्रतीची सुभूता नामोदीची । तासां
वायुर्वत्सः स य एतमेवं वायुं दिशां वत्सं वेद  
पुत्ररोदं रोदिति सोऽहमेतमेवं वायुं दिशां वत्सं
वेद मा पुत्ररोदं रुदम् ॥ ३. १५. २ ॥
उस कोष की पूर्व(प्राची) दिशा जुहू(इसका अर्थ है यज्ञ करना), दक्षिण सहमाना(पापों को सहना), पश्चिम(प्रतीची) दिशा राज्ञी(वरुण से अधिष्ठित सुन्दर) और उत्तर(उदीची) दिशा सुभूता(कुबेरादी अच्छे प्राणियों वाली) नाम की है । वायु उन दिशाओं का बछड़ा है । जो उपासक वायु को दिशाओं के पुत्र या बछड़े (वेद) के रूप में जान जाता है, वह पुत्रनाश होने पर रोता नहीं है ।
अरिष्टं कोशं प्रपद्येऽमुनाऽमुनाऽमुना।
प्राणं प्रपद्येऽमुनाऽमुनाऽमुना भूः प्रपद्येऽमुनाऽमुनाऽमुना
भुवः प्रपद्येऽमुनाऽमुनाऽमुना स्वः प्रपद्येऽमुनाऽमुनाऽमुना ॥ ३. १५. ३
अमुक-अमुक नाम वाले पुत्र के हेतु से मैं उस अविनाशी कोश को प्राप्त होता हूँ । अमुक-अमुक नाम वाले पुत्र के हेतु से मैं प्राण को प्राप्त होता हूँ । अमुक-अमुक नाम वाले पुत्र के हेतु से मैं भू, भुवः और स्वः को प्राप्त होता हूँ ।
स यदवोचं प्राणं प्रपद्ये इति । प्राणो वा इदं सर्वं
भूतं यदिदं किं च तमेव तत्प्रापत्सि ॥ ३. १५. ४ ॥
जैसा कि कहा- प्राण को प्राप्त करता हूँ का अर्थ है कि समस्त  जगत के प्राणात्मक सर्वभूतों को प्राप्त करता हूँ।
अथ यदवोचं भूः प्रपद्ये इति। पृथिवीं प्रपद्येऽन्तरिक्षं
प्रपद्ये दिवं प्रपद्य इत्येव तदवोचम् ॥ ३. १५. ५ ॥
जैसा कि कहा- भू को प्राप्त करता हूँ का अर्थ है कि समस्त पृथकी, अंतरिक्ष और द्युलोक को प्राप्त करता हूँ।

अथ यदवोचं भुवः प्रपद्ये इत्यग्निं प्रपद्ये वायुं
प्रपद्य आदित्यं प्रपद्य इत्येव तदवोचम् ॥ ३. १५. ६ ॥
जैसा कि कहा- भुवः को प्राप्त करता हूँ का अर्थ है कि अग्निदेव, वायुदेव और सूर्यदेव को प्राप्त करता हूँ।

अथ यदवोचं स्वः प्रपद्ये इत्यृग्वेदं प्रपद्ये यजुर्वेदं प्रपद्ये
सामवेदं प्रपद्ये इत्येव तदवोचं तदवोचम् ॥ ३. १५. ७

जैसा कि कहा- स्वः को प्राप्त करता हूँ का अर्थ है कि ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद को प्राप्त करता हूँ।


॥ इति पञ्चदशः खण्डः


 

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