छान्दोग्योपनिषद ( तृतीय प्रपाठक: दशम खण्ड के हिंदी भावार्थ सहित)
॥ दशम खण्ड ॥
अथ यत्पञ्चमममृतं तत्साध्या उपजीवन्ति ब्रह्मणा
मुखेन न वै देवा अश्नन्ति न पिबन्त्येतदेवामृतं
दृष्ट्वा तृप्यन्ति ॥ ३. १०. १ ॥
अथ यत्पञ्चमममृतं तत्साध्या उपजीवन्ति ब्रह्मणा
मुखेन न वै देवा अश्नन्ति न पिबन्त्येतदेवामृतं
दृष्ट्वा तृप्यन्ति ॥ ३. १०. १ ॥
आदित्य के मध्य का कंपन सा प्रभाव ही पाँचवा अमृत है जिसका बारह साध्य देव (अनुमन्ता, प्राण, नर, वीर्य्य यान, चित्ति, हय, नय, हंस, नारायण, प्रभव और विभु ये बारह साध्य देव है जो दक्षपुत्री और धर्म की पत्नी साध्या से उत्पन्न हुए है) ब्रह्मा के चतुर्मुख मुख से पान करते हैं और सदा तृप्त रहते हैं। इसकी उपासना से उपासक को साक्षात् परब्रह्म नारायण की प्राप्ति हो जाती है ।
त एतदेव रूपमभिसंविशन्त्येतस्माद्रूपादुद्यन्ति ॥ ३. १०. २ ॥
ये सभी बारह साध्य देव इस पाँचवे अमृत के उद्देश्य की प्राप्ति से निरंतर उत्साहित होते रहते है ।
स य एतदेवममृतं वेद साध्यानामेवैको भूत्वा
ब्रह्मणैव मुखेनैतदेवामृतं दृष्ट्वा तृप्यति स एतदेव
रूपमभिसंविशत्येतस्माद्रूपादुदेति ॥ ३. १०. ३ ॥
जो उपासक इस कंपन रुपी पाँचवे अमृत को जान लेता है और प्राप्त कर लेता है वह पूर्ण तृप्त हो जाता है ।
स यावदादित्य उत्तरत उदेता दक्षिणतोऽस्तमेता
द्विस्तावदूर्ध्वं उदेतार्वागस्तमेता साध्यानामेव
तावदाधिपत्यँस्वाराज्यं पर्येता ॥ ३. १०. ४ ॥
वह उपासक सूर्य के समस्त दिशाओं में उदय और अस्त होने के सम्पूर्ण काल से भी दुगने समय तक के लिए बारह साध्य देवों के आधिपत्य और स्वाराज्य को प्राप्त करेगा ।
॥ इति दशम खण्ड ॥
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