श्री महागणेश ढुण्डीराज स्तोत्रम्


श्री महागणेश ढुण्डीराज स्तोत्रम्
ढुण्डीराजः प्रियः पुत्रो, भवान्यः शंकरस्य च
तस्य पूजन मात्रेण, त्रयोऽपि वरदाः सदा
स्त्रवन्मद घटा सक्त संगुञ्जलि संकुलः
लसात्सिन्दूर पूरोऽसौ, जयति श्रीगणाधिपः
गृहमेध्यत्र विश्वेशो, भवानी तत्कुटुम्बिनी
सर्वेभ्यः काशीसंस्थेभ्यो,मोक्ष भिक्षां प्रयच्छति
शान्ति कन्थाल सत्कण्ठो, मनःस्थाली मिलत्करः
त्रिपुरारी पुराद्वारि, कदस्यां मोक्ष भिक्षुकः
     श्रीमहागणेश ढुण्डीराज स्तोत्रं सम्पूर्णम्
      

श्रीमहागणेश ढुण्डीराज स्तोत्र का भावानुवाद जिसपर काशी की स्थानीय भाषा में स्तुति और भजन किया जाता है स्कन्द पुराण के काशी खण्ड में इसका वर्णन आता है
(पारवती सिव के अति पियारे, ढुण्डीराज जुवराज दुलारे
तिन्हके पूजन से सन्तोषै, तीनहु देत वरहि नित पोषै
स्त्रवत दान जल लोभ परि, गूँजत भँवर समूह
सेंधुर पूरित तन जयति, गज नायक गजमूँह  
इह गृहस्थ विस्वेस हैं,धरनी मातु भवानी
कासीवासि सब लोग हित, भुक्ति भीख की दानि
सांतिरूप कथरी को ओढौं, अथवा कंठ लपेटौ
मन सरूप बटलोही भीतर, कबहूँ न हाथ समेटौ
श्रीत्रिपुरारी राज की नगरी, फाटक ऊपर जैहों

कब धौ भीख मुक्ति की पैहों, भिच्छुक रूप बनैहों ।)

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