छान्दोग्योपनिषद (तृतीय प्रपाठक का तृतीय खण्ड हिन्दी भावार्थ सहित)

              ॥ तृतीय खण्ड

अथ येऽस्य प्रत्यंञ्चो रश्मयस्ता एवास्य प्रतीच्यो
मधुनाड्यः सामान्येव मधुकृतः सामवेद एव पुष्पं
ता अमृता आपः ॥ ३. ३. १ ॥
     सूर्य के पश्चिम दिशा से आती हुई किरणें इसकी पश्चिम की मधु नाड़ियाँ हैं ।
तानि वा एतानि सामान्येतँ सामवेदमभ्यतपँस्तस्याभितप्तस्य यशस्तेज इन्द्रियं
वीर्यमन्नाद्यँरसोऽजायत ॥ ३. ३. २ ॥
    सामवेद के मंत्र भ्रमर और साक्षात् सामवेद पुष्प है। जब साम के स्रोतों से सामवेद को तपाया जाता है तो उससे ही रस,यश,तेज,ऐश्वर्य, शक्ति और अन्नादि उत्पन्न होते हैं। 
तद्व्यक्षरत्तदादित्यमभितोऽश्रयत्तद्वा
एतद्यदेतदादित्यस्य कृष्णँरूपम् ॥ ३. ३. ३
    यही रस जो आदित्य नाम रुपी भगवान के चारों ओर एकत्रित हुआ है वह ही भगवान का कृष्ण स्वरुप है। 

॥ इति तृतीय खण्ड






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