कूष्माण्डेति चतुर्थकम्


 कूष्माण्डेति चतुर्थकम् 
सुरासम्पूर्णकलशंरुधिप्लूतमेवच।
दधानाहस्तपदमाभयांकूष्माण्डाशुभदास्तुमे॥
ध्यान
वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहरूढाअष्टभुजा कुष्माण्डायशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभांअनाहत स्थितांचतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु चाप बाण पदमसुधाकलशचक्र गदा जपवटीधराम्॥
पटाम्बरपरिधानांकमनीयाकृदुहगस्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिणरत्‍‌नकुण्डलमण्डिताम्।
प्रफुल्ल वदनांनारू चिकुकांकांत कपोलांतुंग कूचाम्।
कोलांगीस्मेरमुखींक्षीणकटिनिम्ननाभिनितम्बनीम्॥
स्तोत्र 
दुर्गतिनाशिनी त्वंहिदारिद्रादिविनाशिनीम्।
जयंदाधनदांकूष्माण्डेप्रणमाम्यहम्॥
जगन्माता जगतकत्रीजगदाधाररूपणीम्।
चराचरेश्वरीकूष्माण्डेप्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुंदरीत्वंहिदु:ख शोक निवारिणाम्।
परमानंदमयीकूष्माण्डेप्रणमाम्यहम्॥
कवच
हसरै मे शिर:पातुकूष्माण्डेभवनाशिनीम्।
हसलकरींनेत्रथ,हसरौश्चललाटकम्॥
कौमारी पातुसर्वगात्रेवाराहीउत्तरेतथा।
पूर्वे पातुवैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणेमम।
दिग्दिधसर्वत्रैवकूंबीजंसर्वदावतु॥

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