गणेशाष्टकम् Ganeshashtakam
गणेशाष्टकम् का सद-चित्त वृत्ति से जप करने से सभी दुखो का नाश होता है और मनुष्य ज्ञान प्राप्त करता है | इसके पाठ मात्र से ही दरिद्रता दूर हो जाती है और मन से प्रत्येक प्रकार का भय समाप्त हो जाता है |
गणेशाष्टकम् | |
गणपतिपरिवारं चारुकेयूरहारं गिरिधरवरसारं योगिनीचक्रचारम् । | |
भवभयपरिहारं दुःखदारिद्र्यदूरं गणपतिमभिवन्दे वक्रतुण्डावतारम् ॥१॥ | |
अखिलमलविनाशं पाणिना हस्तपाशं कनकगिरिनिकाशं सूर्यकोटिप्रकाशम । | |
भज भवगिरिनाशं मालतीतीरवासं गणपतिमभिवंदे मानसे राजहंसम् ॥२॥ | |
विविधमणिमयूखैः शोभमानं विदूरैः कनकरचितचित्रं कण्ठदेशे विचित्रम् । | |
दधति विमलहारं सर्वदा यत्नसारं गणपतिमभिवन्दे वक्रतुण्डावतारम् ॥३॥ | |
दुरितगजममन्दं वारुणीं चैव वेदं विदितमखिलनादं नृत्यमानन्दकन्दम् । | |
दधति शशिसुवक्त्रं चांकुशं यो विशेष गणपतिमभिवन्दे सर्वदानन्दकन्दम् ॥४॥ | |
त्रिनयनयुतभाले शोभमाने विशाले मुकुटमणिसुढाले मौक्तिकानां च जाले । | |
धवलकुसुममाले यस्य शीर्ष्णः सताले गणपतिमभिवन्दे सर्वदा चक्रपाणिम् ॥५॥ | |
वपुषि महति रूपं पीठमादौ सुदीपं तदुपरि रसकोणं यस्य चोर्ध्वं त्रिकोणम् । | |
गजमितदलपद्मं संस्थितं चारुछद्मं गणपतिमभिवन्दे कल्पवृक्षस्य वृन्दे ॥६॥ | |
वरदविशदशस्तं दक्षिणं यस्य हस्तं सदयमभयदं तं चिन्तये चितसंस्थम् । | |
शबलकुटिलशुण्डं चैकतुण्डं द्वितुण्डं गणपतिमभिवन्दे सर्वदा वक्रतुण्डम् ॥७॥ | |
कल्पद्रुमाधः स्थितकामधेनुं चिन्तामणिं दक्षिणपाणिशुण्डम् । | |
बिभ्राणमत्यद्भुतचित्ररूपं यः पूजयेत्तस्य समस्तसिद्धीः ॥८॥ | |
व्यासाष्टकमिदं पुण्यं गणेशस्तवनं नृणाम् । | |
पठतां दुःखनाशाय विद्यां सश्रियमश्नुते ॥९॥ | |
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