मृत्यु सत्य जगत मिथ्या
मृत्यु सत्य जगत मिथ्या (कुछ अलग और विचित्र कहानी है, पर पढ़ें और अपने विचार से अवगत अवश्य करावें.. आपकी समलोचना सर माथे) करके देखें.. मैने तो किया। शवासन में लेटा था मैं...बस इतना ही याद है। ऐसा लगा कि ध्यान की स्थिति में चला गया। ...और फिर देखा कि मैं मर गया। हाँ.. हाँ सचमुच मर गया मैं। पर...आश्चर्य! मैं यह देख कैसे पा रहा हूँ? हाँ... मैं देख रहा हूँ। मैंने चकित होते हुए देखा अपने आप को, अपने दोनो हाथों, पैरों की तरफ। लेकिन सामने तो पड़ा है मेरा शरीर... वो..उस बिस्तर पर। अगर मैं जीवित हूँ तो फिर वह क्या है? मैं देख रहा हूँ, मेरा बेटा आसपास के लोगों को..पड़ोसियों को बुला लाया है। शायद.. यह तो हमारे पड़ोसी डॉ. शर्मा हैं। मेरे समीप ही बैठ गए हैं बिस्तर पर। अपने स्टेथस्कोप से चेक कर रहे हैं, गिनती..धड़कनों की। कुछ मिला नहीं है शायद, थोड़े से घबरा गए। जल्दी से गर्दन पर नसों को ढूँढ रहे हैं। नसें तो खैर वहीं पर हैं पर स्पंदन कोई मिला नहीं। सिर हिलाया है उन्होंने और कुछ तो कहा है मेरे बेटे से..पत्नी की तरफ देख कर भी। मैंने साफ सुना..कह...