छान्दोग्योपनिषद (तृतीय प्रपाठक एकादश खण्ड हिंदी भावार्थ सहित)
छान्दोग्योपनिषद (तृतीय प्रपाठक एकादश खण्ड हिंदी भावार्थ सहित) ॥ एकादश खण्ड ॥ अथ तत ऊर्ध्व उदेत्य नैवोदेता नास्तमेतैकल एव मध्ये स्थाता तदेष श्लोकः ॥ ३. ११. १ ॥ इससे भी अधिक ऊपर अर्थात कल्प ( ब्रह्मा का एक दिन- मनुस्मृति के प्रथम अध्याय के चौसठवें से तिहत्तरवें श्लोक में इस सम्बन्ध में कहा गया है कि कलियुग के 432000, द्वापर के 864000, त्रेता के 1296000 तथा सतयुग के 1728000 वर्ष को मिलकर कुल एक दिव्य-युग होता है और ऐसे हजार दिव्य-युगों को जोड़कर कुल ४३२००००००० चार अरब बत्तीस करोड़ वर्षों का ब्रह्मा का एक दिन और इतनी ही बड़ी एक रात्रि होती है) की समाप्ति के बाद प्राणिमात्र के उदय या अस्त होने की या ऐसा कहें कि जन्म और मृत्यु की स्थिति समाप्त हो जाती है और गम-आगम से प्राणी मुक्त हो जाता है, अमर हो जाता है और भगवान के चरणों में सदैव निवास करता है । उस सम्बन्ध में यह श्लोक मात्र है । न वै तत्र न निम्लोच नोदियाय कदाचन । देवास्तेनाहँसत्येन मा विराधिषि ब्रह्मणेति ॥ ३. ११. २ ॥ उस आदित्य मुक्त समय में सदा ही परमात्मा का प्रका...