क्या मिला क्या खो गया।
क्या मिला क्या खो गया
****************
"सुन राजू क माई !!
हम बिशनवा के साथ गोबरधन परिकरमा के लिए जा रहे हैं।"
"अरे ! हमको भी लिए चलते ना।"
नहीं राजू की माई ! अबकी शरद पूरनिमा का प्रोग्राम बना है, हमका जाए दो। अगले महीना हम तोहरा के ले चलेंगे; ठीक है ना ?"
"अब आप बनाईए लिए हैं प्रोग्राम, त ठीक है, पर हमरी बड़ी इच्छा थी गोवर्धन परिक्रमा की।"
"हम आठ-नौ महीना में रिटायर होइए रहे हैं बस उकरे बाद घूम के आएँगे मथुरा-बिरिन्दाबन भी।"
ठीक है, जाइए। रूपवती मुस्काई।
दोनों मित्र बाइक से स्टेशन के लिए निकले। कुछ ही दूर गए कि टायर फट गया।
बाइक असंतुलित हो पीछे से आते हुए एक ट्रोले की चपेट में आ गई।
बिशन को हल्की चोटें थी पर धरमचंद अब भी बेहोश था।
ट्रोले का ड्राइवर पकड़ा गया। लोगों ने उसे अस्पताल में पहुँचा दिया। रोती पीटती माँ के साथ उसके दोनों बेटे अस्पताल पहुँचे। बदहवास से...।
जाँच में पता चला 'मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर।'
बड़ा खर्च आएगा और डिसीजन भी जल्दी लें। डॉक्टर ने कहा।
"जी...हम बताते हैं।"
सुरेश को बाँह पकड़ कर राजेश एक ओर ले गया।
"भाई ! बापू की हालत कुछ ठीक नहीं लगती।" सुरेश रुआँसा था।
राजेश बोला- "अबे ! तू सोच, अगर उनका इलाज किया भी गया तो पल्ले की सारी दमड़ी खर्च हो जाएगी और मिलेगा क्या?
दम तोड़ता बाप, जिसकी पूरी जिंदगी सेवा करनी पड़ेगी और अपनी जिंदगी तो वैसे ही झंड है, तेरे को पता ही है।
इनको घर ले चलते हैं।
सोच!! यदि इनको भगवान को ठीक करना है तो वैसे ही ठीक हो जाएँगे नहीं तो जो भी होगा उसी ऊपर वाले पर छोड़ देते हैं।
कहते हुए उसके होठों पर जहरीली मुस्कुराहट तैर गई।
इलाज के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है, कह वे पिता को वापस घर ले आए।
अगले ही दिन धरमचंद को कभी न टूटने वाली नींद आई।
तीन महीने के बाद--
ट्रोले के इंश्योरेंस से पच्चीस लाख का बीमा क्लेम राजेश और सुरेश के परिवार को मिला।
बड़े पुत्र राजेश को रेलवे की नौकरी।
सेवानिवृत्ति लाभों के रूप में सत्ताईस लाख रुपए परिवार को, साथ में फैमिली पेंशन भी।
धरमचंद के जीते जी दोनों भाइयों को जो मौज न मिली थी अब मिल गई।
वज्रपात तो हुआ था रूपवती पर..
कल करवाचौथ है।
सच..क्या मिला.. पर क्या खो दिया।
****************
"सुन राजू क माई !!
हम बिशनवा के साथ गोबरधन परिकरमा के लिए जा रहे हैं।"
"अरे ! हमको भी लिए चलते ना।"
नहीं राजू की माई ! अबकी शरद पूरनिमा का प्रोग्राम बना है, हमका जाए दो। अगले महीना हम तोहरा के ले चलेंगे; ठीक है ना ?"
"अब आप बनाईए लिए हैं प्रोग्राम, त ठीक है, पर हमरी बड़ी इच्छा थी गोवर्धन परिक्रमा की।"
"हम आठ-नौ महीना में रिटायर होइए रहे हैं बस उकरे बाद घूम के आएँगे मथुरा-बिरिन्दाबन भी।"
ठीक है, जाइए। रूपवती मुस्काई।
दोनों मित्र बाइक से स्टेशन के लिए निकले। कुछ ही दूर गए कि टायर फट गया।
बाइक असंतुलित हो पीछे से आते हुए एक ट्रोले की चपेट में आ गई।
बिशन को हल्की चोटें थी पर धरमचंद अब भी बेहोश था।
ट्रोले का ड्राइवर पकड़ा गया। लोगों ने उसे अस्पताल में पहुँचा दिया। रोती पीटती माँ के साथ उसके दोनों बेटे अस्पताल पहुँचे। बदहवास से...।
जाँच में पता चला 'मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर।'
बड़ा खर्च आएगा और डिसीजन भी जल्दी लें। डॉक्टर ने कहा।
"जी...हम बताते हैं।"
सुरेश को बाँह पकड़ कर राजेश एक ओर ले गया।
"भाई ! बापू की हालत कुछ ठीक नहीं लगती।" सुरेश रुआँसा था।
राजेश बोला- "अबे ! तू सोच, अगर उनका इलाज किया भी गया तो पल्ले की सारी दमड़ी खर्च हो जाएगी और मिलेगा क्या?
दम तोड़ता बाप, जिसकी पूरी जिंदगी सेवा करनी पड़ेगी और अपनी जिंदगी तो वैसे ही झंड है, तेरे को पता ही है।
इनको घर ले चलते हैं।
सोच!! यदि इनको भगवान को ठीक करना है तो वैसे ही ठीक हो जाएँगे नहीं तो जो भी होगा उसी ऊपर वाले पर छोड़ देते हैं।
कहते हुए उसके होठों पर जहरीली मुस्कुराहट तैर गई।
इलाज के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है, कह वे पिता को वापस घर ले आए।
अगले ही दिन धरमचंद को कभी न टूटने वाली नींद आई।
तीन महीने के बाद--
ट्रोले के इंश्योरेंस से पच्चीस लाख का बीमा क्लेम राजेश और सुरेश के परिवार को मिला।
बड़े पुत्र राजेश को रेलवे की नौकरी।
सेवानिवृत्ति लाभों के रूप में सत्ताईस लाख रुपए परिवार को, साथ में फैमिली पेंशन भी।
धरमचंद के जीते जी दोनों भाइयों को जो मौज न मिली थी अब मिल गई।
वज्रपात तो हुआ था रूपवती पर..
कल करवाचौथ है।
सच..क्या मिला.. पर क्या खो दिया।
टिप्पणियाँ
apki amoolya tippadi ke liye abhar.